SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कालका-कालरात्रिवत येन मृत्युवशं याति कृतं येन जयं व्रजेत् । गया, तब वे उस स्थान से आकर कालका में स्थित हुई। संहर्ता सोऽपि विज्ञेयः कालः स्यात् कलनापरः ।। कालक्षेपम्-मराठा भक्तों की 'हरिकथा' नामक एक कालः सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः । संस्था है, जिसमें वक्ता गीतों में उपदेश देता है तथा कालः स्वपिति जागति कालो हि दुरतिक्रमः ॥ बीच-बीच में 'जय राम कृष्ण हरि' का उच्च स्वर से [ काल तीन प्रकार का जानना चाहिए; अतीत (भूत), कीर्तन करता है। इसके साथ वह अनेक श्लोक पढ़ता अनागत ( भविष्य ) और वर्तमान । इसका लक्षण कहता हुआ उनकी व्याख्या करता है। यही गीत एवं गद्य हूँ, सुनो। काल लोक की गणना करता है, काल जगत् भाषण की उपदेश प्रणाली पूरे दक्षिण भारत में है । वहाँ की गणना करता है, काल विश्व की गणना करता है, गायक को भागवत तथा उसके गीतबद्ध उपदेश को इसलिए यह काल कहलाता है। सभी देव, ऋषि, सिद्ध 'कालक्षेपम्' कहते हैं । इसका शाब्दिक अर्थ है 'भगवन्नामऔर किन्नर काल के वश हैं। काल स्वयं ही भगवान् कीर्तन में काल (समय) बिताना ।' देव है; वह साक्षात् परमेश्वर है। वह सृष्टि, पालन कालज्ञानतन्त्र-एक तन्त्र ग्रन्थ । शाक्त साहित्य से सम्बऔर संहार करनेवाला है। वह काल सर्वत्र समान है। न्धित इस तन्त्र की रचना आठवीं शती में हुई । स्वर्गीय काल से ही विश्व की कल्पना होती है, इसलिए वह म० म० हरप्रसाद शास्त्री ने इसका विस्तृत विश्लेषण काल कहलाता है। जिससे उत्पत्ति होती है. जिससे किया है। कला की कल्पना होती है, वही जगत की उत्पत्ति करने- कालपी-झाँसी से ९२ मील दूर कालपी नगर यमुना के वाला काल जगत् का अन्त करनेवाला भी होता है । जो दक्षिण तट पर स्थित है । कालपी में जौंधर नाला के पास सभी कर्मों को बढ़ते हुए और होते हुए देखता है, उसी वेदव्यास ऋषि का जन्मस्मारक व्यासटीला है। इसके काल को प्रवर्तक जानना चाहिए। वही प्रतिपालक भी पास ही नृसिंहटीला है। यहाँ के निवासियों का विश्वास होता है । जिसके द्वारा किया हुआ विनाश को प्राप्त होता है कि प्रलयकाल आने पर जौंधर नाले से मोटी जलधारा है, अथवा जय को प्राप्त होता है, वही काल संहर्ता और निकल कर विश्व को जलमग्न कर देगी। यहीं कालप्रिय कलना में संलग्न है। काल ही सम्पूर्ण भूतों को उत्पन्न (कालपी) नाथ का स्थान है जो तीर्थरूप में प्रसिद्ध है। करता है, काल ही प्रजा का सहार करता है, काल ही कालभैरवाष्टमी-मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को कालभैरवासोता और जागता है। काल दुरतिक्रम है अर्थात् उसका ष्टमी कहते हैं । इस तिथि के कालभैरव देवता है, जिनका कोई अतिक्रमण नहीं कर सकता ।] पूजन, दर्शन इस दिन करना चाहिए । दे० व्रतकोश, भागवत पुराण ( ९.९.२ ) में काल मृत्यु का पर्याय ३१६-३१७; वर्षकृत्यदीपक, १०६ । माना गया है। मेदिनीकोश में काल को ही महाकाल कालमाधव-माधवाचार्य रचित एक धर्मशास्त्र सम्बन्धी कहा गया है और दीपिका में शनि ।। ग्रन्थ । इसका दूसरा नाम 'कालनिर्णय' है। इस पर मिश्रकालका-(१) कालकेय नामक असुरगण की माता। भागवत मोहन तर्कतिलक की एक टीका भी है जो सं० १६७० पुराण (६.६.३२) के अनुसार यह वैश्वानर की कन्या है : में लिखी गयी थी। इसकी कई व्याख्याएं उपलब्ध हैं । वैश्वानरसुता याश्च चतस्रश्चारुदशनाः । इनमें नारायण भट्ट का कालनिर्णयसंग्रह श्लोकविवरण, उपदानवी हयशिरा पुलोमा कालका तथा ।। मथुरानाथ की कालमाधव चन्द्रिका, रामचन्द्राचार्य की यजुर्वेदसंहिता के अनुसार कालका अश्वमेध यज्ञ का दीपिका, लक्ष्मीदेवी की लक्ष्मी (भाष्य) आदि प्रसिद्ध है । बलिपशु कहा गया है, जिसे अधिकांश उद्धरणों में एक कालमुखशाखा-दे० 'कारुणिक सिद्धान्त' । प्रकार का पक्षी समझा जाता है। कालरात्रिवत-आश्विन शुक्ल अष्टमी को इस व्रत का अम्बाला (पंजाब) से '४० मील दूर कालका अनुष्ठान किया जाता है। लगभग सभी वर्गों के लिए स्टेशन है। यहीं कालका देवी का मन्दिर है। सात दिन, तीन दिन अथवा शरीर की शक्ति के अनुसार परम्परा के अनुसार पार्वती के शरीर से कौशिकी देवी केवल एक दिन का उपवास विहित है । पहले श्री गणेश, के प्रकट हो जाने पर पार्वती का शरीर श्यामवर्ण हो • मातृदेवों, स्कन्द तथा शिवजी का पूजन होता है, तद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy