SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कातिक-कार्णाजिनि होंगे । शिव योगशक्ति से कायारोहण स्थान पर एक मृतक २१-५८) के अनुसार कार्तिक मास में मांस खानेवाला शरीर में, जो वहाँ अरक्षित पड़ा होगा, प्रवेश करेंगे तथा चाण्डाल हो जाता है । दे० 'बकपञ्चक' । लकुलीश नामक संन्यासी के रूप में प्रकट होंगे । कुशिक, शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्यान्य देवों के मन्दिरों में गार्य, मित्र एवं कौरश्य उनके शिष्य होंगे जो शरीर पर कार्तिक मास में दीप जलाने तथा प्रकाश करने की बड़ी भस्म मलकर पाशुपत योग का अभ्यास करेंगे। प्रशंसा की गयी है। समस्त कार्तिक मास में भगवान् उदयपुर से १४ मील दूर स्थित एकलिङ्गजी के एक केशव का मुनि ( अगस्त्य ) पुष्पों से पूजन किया जाना पुराने मन्दिर के लेख से इस बात की पुष्टि होती है कि चाहिए। ऐसा करने से अश्वमेध यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता भगवान् शिव भडौंच प्रान्त में कायारोहण स्थान पर अव- है। दे० तिथितत्त्व १४७ ।। तरित हुए एवं अपने हाथ में एक लकुल धारण किये हुए कार्तिकपूणिमा-यह शरद ऋतु की अन्तिम तिथि है जो थे। चित्रप्रशस्ति में भी उपर्युक्त कथानक प्राप्त होता बहुत पवित्र और पुण्यदायिनी मानी जाती है। इस अवहै कि शिव पाशुपत धर्म के कड़े नियमों के पालनार्थ लाट सर पर कई स्थानों पर मेले लगते हैं। सोनपुर में हरिहरप्रान्त के करोहन (सं० कायारोहण) में अवतरित हुए। क्षेत्र का मेला तथा गढ़मुक्तेश्वर ( मेरठ), वटेश्वर यह स्थान गुजरात में आजकल 'करजण' (कायारोहण का (आगरा), पुष्कर (अजमेर) आदि के विशाल मेले विकृत रूप) कहलाता है । यहाँ अब भी लकुलोश का एक इसी पर्व पर लगते हैं। व्रजमण्डल और कृष्णोपासना से मन्दिर है, जिसमें उनकी प्रतिमा स्थापित है। प्रभावित अन्य प्रदेशों में इस समय रासलीला होती है । कातिक-यह बड़ा पवित्र मास माना जाता है । यह समस्त इस तिथि पर किसी को भी बिना स्नान और दान के तीर्थों तथा धार्मिक कृत्यों से भी पवित्रतर है। इसके • नहीं रहना चाहिए। स्नान पवित्र स्थान एवं पवित्र माहात्म्य के लिए देखिए स्कन्द पुराण के वैष्णव खण्ड का नदियों में एवं दान अपनी शक्ति के अनुसार करना नवम अध्याय; नारदपुराण (उत्तरार्द्ध), अध्याय २२; पद्म चाहिए । न केवल ब्राह्मण को अपितु निर्धन सम्बन्धियों, पुराण, ४.९२। बहिन, बहिन के पुत्रों, पिता की बहिनों के पुत्रों, फूफा कातिकस्नानवत-सम्पूर्ण कार्तिक मास में गृह से बाहर आदि को भी दान देना चाहिए । पुष्कर, कुरुक्षेत्र तथा किसी नदी अथवा सरोवर में स्नान करना चाहिए। वाराणसी के तीर्थस्थान इस कार्तिकी स्नान और दान के गायत्री मन्त्र का जप करते हुए हविष्यान्न केवल एक बार लिए अति महत्त्वपूर्ण हैं। ग्रहण करना चाहिए । व्रती इस व्रत के आचरण से वर्ष कार्तिकेयव्रत--षष्ठी को इस व्रत का अनुष्ठान किया जाता भर के समस्त पापों से मुक्त हो जाता हैं। ६० विष्णु- है। स्वामी कार्तिकेय इसके देवता हैं। दे० हेमाद्रि, धर्मोत्तर, ८१,१-४; कृत्यकल्पतरु, ४१८ द्वारा उद्धृत; व्रतखण्ड, १.६०५, ६०६; व्रतकालविवेक, पृष्ठ २४ । हेमाद्रि, २.७६२ । कातिकेयषष्ठी-मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को इस व्रत का कार्तिक मास में समस्त त्यागने योग्य वस्तुओं में मांस अनुष्ठान होता है। इस दिन सुवर्णमयी, रजतमयी, विशेष रूप से त्याज्य है। श्रीदत्त के समयप्रदीप (४६) काष्ठमयी अथवा मृन्मयी कार्तिकेग्न की प्रतिमा का पूजन तथा कृत्यरत्नाकर (पृ० ३९७-३९९) में उद्धृत महा होता है । दे० हेमाद्रि, व्रतखण्ड, १.५९६-६०० । भारत के अनुसार कार्तिक मास में मांसभक्षण, विशेष रूप से शक्ल पक्ष में, त्याग देने से इसका पुण्य शत वर्ष तक काष्णाजिनि-आचार्य कााजिनि के नाम का उल्लेख के तपों के बराबर हो जाता है । साथ ही यह भी कहा ब्रह्मसूत्र (३.१.९) और मीमांसासूत्र (४.३.१७; ६.७.३५) गया है कि भारत के समस्त महान् राजा, जिनमें ययाति, दोनों में हुआ है। ये भी व्यासदेव और जैमिनि के पूर्वराम तथा नल का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, वर्ती आचार्य हैं। इनका उल्लेख व्यासदेव ने अपने मत कार्तिक मास में मांस भक्षण नहीं करते थे। इसी कारण के समर्थन में और जैमिनि ने इनका खण्डन करने के लिए उनको स्वर्ग की प्राप्ति हुई। नारदपुराण (उत्तरार्द्ध, किया है। इससे मालूम होता है कि ये वेदान्त के ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy