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________________ १५० ( कच्छा) उन पाँचों में से एक है। पाँच पहनावे है कच्छ कड़ा, कृपाण, केश एवं कंघा । कज्जली - भाद्र कृष्ण तृतीया को इस व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए । इसमें विष्णुपूजा का विधान है । निर्णयसिन्धु के अनुसार यह मध्य देश (बनारस, प्रयाग आदि ) में अत्यन्त प्रसिद्ध है । कठरुद्रोपनिषद् - उत्तरकालीन एक उपनिषद् । जैसा कि नाम से प्रकट है, यह कठशाखा तथा रुद्र देवता से सम्बद्ध उपनिषद् है । इसमें रुद्र की महिमा तथा आराधना बतलायी गयी है। कठश्रुति उपनिषद् - यह संन्यासमार्गीय एक उपनिषद् है । इसका रचनाकाल मैत्रायणी उपनिषद् के लगभग है। कठोपनिषद् - कृष्ण यजुर्वेद की कठशाखा के अन्तर्गत यह उपनिषद् है । इसमें दो अध्याय और छः वल्लियाँ हैं । इसके विषय का प्रारम्भ उद्दालकपुत्र वाजश्रवस ऋषि के विश्वजित् यज्ञ के साथ होता है। इसमें नचिकेता की प्रसिद्ध कथा है, जिसमें श्रेय और प्रेय का विवेचन किया गया है। नचिकेता ने यमराज से तीन वर मांगे थे, जिनमें तीसरा ब्रह्मज्ञान का वर था । यमराज द्वारा नचिकेता के प्रति वर्णित ब्रह्मविद्या का उपदेश इसका प्रतिपाद्य मुख्य विषय है। कण्टकोद्धार - आचार्य रामानुज ( विक्रमाब्द प्रायः ११९४ ) ने अपने मत की पुष्टि, प्रचार एवं शाङ्करमत के खण्डन के लिए अनेकों ग्रन्थों की रचना की, जिनमें से 'कण्टकोद्धार' भी एक है । इसमें अद्वैतमत का निराकरण करके विशिष्टाद्वैत मत का प्रतिपादन किया गया है। कटदानोत्सव यह उत्सव भाद्रपद शुक्ल एकादशी, द्वादशी, पूर्णिमा को जब भगवान् विष्णु दो मास के और शयन के लिए करवट बदलते हैं, मनाया जाता है । दे० हेमाद्रि, व्रतखण्ड २.८१३ स्मृतिकौस्तुभ १५३ ॥ कणाद - वैशेषिक दर्शन के प्रणेता कणाद ऋषि । इनका वैशेषिकसूत्र इस दर्शन का मूल ग्रन्थ है । प्रशस्तपाद का 'पदार्थधर्मसंग्रह' नामक ग्रन्थ ही वैशेषिक दर्शन का भाष्य कहलाता है | परन्तु यह भाष्य नहीं है और सूत्रों के आधार पर प्रणीत स्वतन्त्र ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ में कणाद ने धर्म का लक्षण इस प्रकार बतलाया है : 1 Jain Education International कजली-प 'यतोऽभ्युदय निःश्रेयस सिद्धिः स धर्मः ।' [ जिससे अभ्युदय ( ऐहलौकिक सुख) तथा निःश्रेयस ( पारमार्थिक मोक्ष) की सिद्धि हो वह धर्म है । ] इसके पश्चात् सब पदार्थों के प्रकार, लक्षण तथा स्वरूप का परिचय दिया गया है। उनके मतानुसार नाना भेदों से भिन्न अनन्त पदार्थ हैं । इन समस्त पदार्थों की अवगति हजार युग बीत जाने पर भी एक-एक को पकड़कर नहीं हो सकती । अतः श्रेणीविभाग द्वारा विश्व के सभी पदार्थों का ज्ञान इस दर्शन के द्वारा कराया गया है। इसमें विशेषताओं के आधार पर पदार्थों का वर्णन किया गया है, अतः इसका नाम वैशेषिक दर्शन है । प्रसिद्ध है कि कश्यप गोत्र के ऋषि कणाद ने उम्र तप किया और इन्होंने शिलोञ्छ बीनकर अपना जीवन बिताया इसीलिए ये कणाद (कण = दाना खाने वाले) कहलाये । अथवा कण अणु के सिद्धान्तप्रवर्तक होने से ये कणाद कहे गये। इनके शुद्ध अन्तःकरण में इसीलिए पदार्थों के तत्त्वज्ञान का उदय हुआ । कणाद ने प्रमेय के विस्तार के साथ अपने सूत्रों में आत्मा और अनात्मा पदार्थों का विवेचन किया है। परन्तु शास्त्रार्थ की विधि और प्रमाणों के विस्तार के साथ इन वस्तुओं के विवेचन की आवश्यकता थी । इसकी पूर्ति गौतम के 'न्यायदर्शन' में की गयी है। दे० 'वैशेषिक दर्शन' । कण्व - ऋग्वेद के प्रथम सात मण्डलों के सात प्रमुख ऋषियों में कण्व का नाम आता है। आठवें मण्डल की ऋचाओं की रचना भी कुछ परिवार की ही है, जो पहले मण्डल के रचयिता है। ऋग्वेद तथा परवर्ती साहित्य ( ऋ० १.३६,८,१०, ११,१७,१९,३९,७,९, ४७, ५, ११२, ५, ११७,८; ११८, ७, १३९,९; ५.४१,४;८.५, २३, २५, ७-१८, ८, २०, ४९, १०, ५०,१०:१०.७१, ११:११५.५१५०५ अथर्व वेद ४.३७, १७.१५,१;१८.३,१५ वाजसनेयी सं० १७.७४; पञ्चविंश ब्रा० ८.२,२; ९.२,९; कौ० ब्रा० २८.८ ) में कण्व का नाम बार-बार आता है । उनके पुत्र तथा वंशजों का उद्धरण, विशेष कर ऋग्वेद के आठवें मण्डल में कण्वाः, कण्वस्य सूनवः, काण्वायनाः एवं काण्व नामों से आया है । कण्व के एक वंशज का एकवचन में अकेले वा पैतृक पदवी के साथ 'कृण्व मार्षद' (ऋ० १.४८, ४, ८.३४, १) रूप में तथा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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