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________________ १३६ ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका-ऋजुविमला देवपूजन और अतिथिपूजन पर बल दिया गया है। पितरों १२. मोक्षशास्त्र के प्रति आदर-श्रद्धा का आदेश है। १३. नौ-निर्माण तथा वायुयान निर्माण कला ऋग्वेद में ऋत की महती कल्पना है, जो सम्पूर्ण १४. बिजली और ताप विश्व में व्यवस्था बनाये रखने में समर्थ है। यही कल्पना १५. आयुर्वेद विज्ञान नीति का आधार है। वरुणसूक्त (ऋ० वे० ५.८५.७) में १६. पुनर्जन्म सुन्दर नैतिक उपदेश पाये जाते हैं। ऋत के साथ सत्य, १७. विवाह व्रत और धर्म की महत्त्वपूर्ण कल्पनाएँ तथा मान्यताएं हैं। १८. नियोग हिन्दू धर्म के सभी तत्त्व मूलरूप से ऋग्वेद में वर्तमान १९. शासक तथा शासित के धर्म है । वास्तव में ऋग्वेद हिन्दू धर्म और दर्शन की आधार- २०. वर्ण और आश्रम शिला है। भारतीय कला और विज्ञान दोनों का उदय २१. विद्यार्थी के कर्तव्य यहीं पर होता है। विश्व के मूल में रहनेवाली सत्ता के २२. गृहस्थ के कर्तव्य अव्यक्त और व्यक्त रूप में विश्वास, मन्त्र, यज्ञ, अभि २३. वानप्रस्थ के कर्तव्य चार आदि से उसके पूजन और यजन आदि मौलिक २४. संन्यासी के कर्तव्य धार्मिक तत्त्व ऋग्वेद में पाये जाते हैं । इसी प्रकार तत्त्वों २५. पञ्च महायज्ञ को जानने की जिज्ञासा, जानने के प्रकार, तत्त्वों के रूप २६. ग्रन्थों का प्रामाण्य कात्मक वर्णन, मानवजीवन की आकांक्षाओं, आदर्शों २७. योग्यता और अयोग्यता तथा मन्तव्य आदि प्रश्नों पर ऋग्वेद से पर्याप्त प्रकाश २८. शिक्षण और अध्ययनपद्धति पड़ता है । दर्शन की मूल समस्याओं; ब्रह्म, आत्मा, माया, २९. प्रश्नों और सन्देहों का समाधान कर्म, पुनर्जन्म आदि का स्रोत भी ऋग्वेद में पाया जाता ३०. प्रतिज्ञा है। देववाद, एकेश्वरवाद, सर्वेश्वरवाद, अद्वैतवाद, सन्देह- ३१. वेद सम्बन्धी प्रश्नोत्तर . वाद आदि दार्शनिक वादों का भी प्रारम्भ ऋग्वेद में ही ३२. वैदिक शब्दों के विशेष नियम-निरुक्त दिखाई पड़ता है। ३३. वेद और व्याकरण के नियम ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका-महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वेदों ३४. अलंकार और रूपक का स्वतन्त्र भाष्य किया है। उनका 'ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका' पाश्चात्य विद्वानों के मन्तव्यों के परिष्कारार्थ इस अति प्रभावशाली ग्रन्थ है, जो वेदभाष्य की भूमिका के प्रकार का वेदार्थविचार अत्युपयोगी है। रूप में प्रस्तुत किया गया है । इसमें निम्नांकित विषयों पर ऋजिश्वा-ऋजिश्वा का उल्लेख ऋग्वेद (१.५१,५;५.३, विचार हुआ है : ८; १०.१.१;६.२०.७) में अनेकों बार आया है, किन्तु १. वेदों का उद्गम अस्पष्ट रूप से, जैसे कि यह अति प्राचीन नाम हो। यह २. वेदों का अपौरुषेयत्व और सनातनत्व पिघु तथा कृष्णगर्भा आदि दैत्यों से युद्ध करने में इन्द्र की ३. वेदों का विषय सहायता करता है । लडविग के अनुसार यह औशिज का ४. वेदों का वेदत्व पुत्र है, किन्तु यह सन्देहात्मक धारणा है। वह दो बार ५. ब्रह्मविद्या स्पष्ट रूप से वैदथिन अथवा विदथी का वंशज कहा गया ६. वेदों का धर्म है (ऋ० ४.१६.१३; ५.२९.११)। ७. सृष्टिविज्ञान ऋजुकाम-कश्यप मुनि का एक पर्याय । इसका शब्दार्थ ८. सृष्टिचक्र है, 'जिसकी कामना सरल हो ।' ऋजुकामता एक धार्मिक ९. गुरुत्व और आकर्षण शक्ति गुण माना जाता है। १०. प्रकाशक और प्रकाशित ऋजुविमला-पूर्वमीमांसा सूत्र पर लिखा हुआ व्याख्या११. गणितशास्त्र ग्रन्थ । इसका रचनाकाल ७०० ई० के लगभग और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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