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________________ ११२ उदकपरीक्षा-उदयन स्नान के बाद सम्बधी एक साफ घास के मैदान में बैठते निर्जलेषु च देशेषु खनयामासुरुत्तमान् । हैं जहाँ उनका मनबहलाव कथाओं अथवा यम-गीत द्वारा उदपानान् बहुविधान् वेदिकापरिमण्डितान् । किया जाता है। घर के द्वार पर वे पिचुमण्ड को पती [जल रहित प्रदेशों में अनेक प्रकार की वेदिकाओं से चबाते हैं, मुख धोते हैं, पानी, अग्नि तथा गोबर आदि का सुसज्जित उत्तम कुएं खोदे गये । ] स्पर्श करते हैं, एक पत्थर पर चढ़ते हैं और तब घर में यह 'इष्टापूर्त' नामक पुण्यकर्मों में 'पूर्त' के अन्तर्गत प्रवेश करते हैं। विशेष कृत्य है। इसको खुदवाने से बड़ा भारी पुण्य उदकपरीक्षा-जल के द्वारा अपराध के सत्यासत्य की परीक्षा। होता है। दिव्य प्रमाणों में यह आता है । वाद उत्पन्न होने पर उदमय आतरेय-ऐतरेय ब्राह्मण (८.२२ ) में उदमय चार प्रमाणों के आधार पर न्याय किया जाता है। वे हैं- आतरेय को अङ्ग वैरोचन का पारिवारिक पुरोहित कहा (१) लिखित, (२) भुक्ति, (३) साक्षी और (४) दिव्य ।। उदकपरीक्षा दिव्य का ही एक प्रकार है । जल के प्रयोग से उदयगिरि-खण्डगिरि-भुवनेश्वर से सात मील पश्चिम यह परीक्षा होती है, क्योंकि हिन्दू धर्म में जल को बहुत उदयगिरि तथा खण्डगिरि नामक पहाड़ियाँ हैं । यह पवित्र माना जाता है और यह विश्वास किया जाता है कि प्रधानतः जैन तीर्थ है, परन्तु सभी हिन्दू इसको पवित्र जलस्पर्श करते समय कोई झूठ नहीं बोलेगा। आजकल मानते हैं। यहाँ कलिङ्ग देश के ५०० मुनि मोक्ष प्रायः गङ्गाजल इसके लिए प्रयुक्त होता है। प्राप्त कर गये हैं । दोनों,पहाड़ियाँ समीप हैं। उदयगिरि प्राचीन रीति में दोषी व्यक्ति को निर्धारित समय तक का नाम कुमारगिरि है । महावीर स्वामी यहाँ पधारे थे। जल में डुबकी लगानी होती थी । समय से पूर्व ऊपर उठ इसमें अनेक गुफाएं हैं। उनमें अनेक मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । आने वाला व्यक्ति अपराधी मान लिया जाता था। खण्डगिरि के शिखर पर एक जैन मन्दिर है। दो मन्दिर उदकसप्तमी-इसमें सप्तमी को एक अञ्जलि पानी पीकर व्रत और है । पास ही आकाशगङ्गा नामक कुण्ड है। आगे रखने का विधान है । इससे आनन्द की प्राप्ति होती है । दे० गुप्तगङ्गा, श्यामकुण्ड तथा राधाकुण्ड है। एक गुफा में कृत्यकल्पतरु का व्रतकाण्ड, १८४, हेमाद्रि, व्रतखण्ड ७२६ । २४ तीर्थंकरों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। उदयगिरि तथा उद्गाता-सामगान करने वाला याजक 'उद्गाता' कह- खण्डगिरि की प्राचीन गुफाओं तथा वहाँ को शिल्प की लाता है। हरिवंश में कथन है : कला को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। ब्रह्माणं परमं वक्त्रादुद्गातारञ्च सामगम् । उदयन-न्यायदर्शन के आचार्यों में उदयन का स्थान बड़ा होतारमथ चाध्वर्यु बाहुभ्यामसृजत्प्रभुः ॥ ही ऊँचा है । इनके द्वारा विरचित 'कुसुमाञ्जलि' में ईश्वर [ प्रजापति ने ब्रह्मा को तथा सामगान करने वाले उद्- की सत्ता को भली भाँति प्रमाणित किया गया है। यह गाता को अपने मुख से और होता तथा अध्वर्य को बाहओं ग्रन्थ दूसरे ईश्वरवादी दार्शनिकों को भी प्रिय है । उदयन से उत्पन्न किया । ] ने इसमें भास्कर (भास्कराचार्य) पर आक्षेप किया है, जो वैदिक यज्ञों, विशेष कर सोमयज्ञ में, सामवेद के मन्त्रों का वेदान्त के आचार्य थे और जिन्होंने अपने भाष्य (भास्करगान होता था । गाने वाले पुरोहित को 'उद्गाता' कहते भाष्य) में शाङ्कर मत का खण्डन किया है। उदयनाचार्य थे । उद्गाता को दो प्रकार की शिक्षा लेनी पड़ती थी। ने 'न्यायवार्तिकतात्पर्यपरिशुद्धि' की भी रचना की है। यह पहली शिक्षा थी-शुद्ध एवं शीघ्र मन्त्रों का गायन, तथा ग्रन्थ वाचस्पति की टीका का ही स्पष्टीकरण है। उन सभी स्वरों की जानकारी जो विशेष कर सोमयज्ञों में कहते हैं कि आचार्य उदयन जब जगन्नाथजी के दर्शन प्रयुक्त होते थे। दूसरी शिक्षा से इस बात का स्मरण करने गये उस समय मन्दिर के पट बन्द थे। इससे आचार्य रखना होता था कि किस सोमयज्ञ में कौन सा सूक्त या ने व्यंग्यवचनपूर्वक उनकी इस प्रकार स्तुति की : मन्त्र गान करना पड़ेगा। ऐश्वर्यमदमत्तोसि मामवज्ञाय वर्तसे । उदपान-जिसमें से जल पिया जाता है । अमरकोश के अनु उपस्थितेषु बौद्धेषु मदधीना तव स्थितिः । सार इसका अर्थ कूप है । अन्यत्र भी कहा है : [ जगत् के नाथ (ईश्वर) होने से मत्त होकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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