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________________ आदर्शन-आर्यसमाज ८९ नहीं चाहिए, और (२) अपरा भक्ति (साधनरूप भक्ति)। आर्त भक्ति अपरा भक्ति का ही एक उप प्रकार है। आदर्शन अथवा आाभिषेक-यह व्रत मार्गशीर्ष पूर्णिमा को होता है। दक्षिण भारत में नटराज ( नृत्यमुद्रा में भगवान् शिव ) के दर्शनार्थ जनसमूह चिदम्बरम में उमड़ पड़ता है। दक्षिण भारत का यह एक महान् व्रत है। आर्द्रानन्दकरी तृतीया-हस्त एवं मूल, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़ अभिजित् नक्षत्रों के दिन वाली शुक्ल पक्ष की तृतीया। वर्ष को तीन भागों में विभाजित कर एक वर्ष तक इस व्रत का आचरण करना चाहिए । इस व्रत में शिव तथा भवानी का पूजन होता है। भवानी के चरणों से प्रारम्भ कर मुकुट तक शरीर के प्रत्येक अवयव को नमस्कार किया जाता है । दे० हेमाद्रि, व्रत खण्ड, १.४७१-४७४ । आर्य-आर्यावर्त का निवासी, सभ्य, श्रेष्ठ, सम्मान्य । वैदिक साहित्य में उच्च वर्गों के लिए व्यवहृत साधारण उपाधि । कहीं-कहीं 'आर्य' (अथवा 'अर्य') वैश्यों के लिए ही सुरक्षित समझा गया है ( अथर्व १९.३२, ८ तथा ६२,१ ) । आर्य शब्द से मिश्रित उपाधियाँ ब्राह्मण और क्षत्रियों की भी हुआ करती थीं । किन्तु 'शूद्रायौं' यौगिक शब्द का अर्थ अस्पष्ट है । आरम्भ में इसका अर्थ सम्भवतः शूद्र एवं आर्य था, क्योंकि महाव्रत उत्सव में तैत्तिरीयब्राह्मण में ब्राह्मण एवं शूद्र के बीच (कृत्रिम) युद्ध करने को कहा गया है, यद्यपि सूत्र इसे वैश्य ( अर्य ) एवं शूद्र का युद्ध बतलाता है । कतिपय विद्वानों के मत में यह युद्ध और विरोध प्रजातीय न होकर सांस्कृतिक था। वस्तुतः यह ठीक भी जान पड़ता है, क्योंकि शूद्र तथा दास बृहत् समाज के अभिन्न अङ्ग थे। 'आर्य' शब्द ( स्त्रीलिंग आर्या ) आर्य जातियों के विशेषण, नाम, वर्ण, निवास के रूप में प्रयुक्त हुआ है। यह श्रेष्ठता सूचक भी माना गया हैं : 'योऽहमार्येण परवान भ्रात्रा ज्येष्ठेन भामिनि ।' (रामायण, द्वितीय काण्ड) इस प्रकार महर्षि बाल्मीकि ने आर्य शब्द को श्रेष्ठ या सम्मान्य के अर्थ में ही प्रयुक्त किया है । स्मति में आर्य का निम्नलिखित लक्षण किया गया है : कर्त्तव्यमाचरन् काममकर्त्तव्यमनाचरन् । तिष्ठति प्राकृताचारे स तु आर्य इति स्मृतः ।। बणश्रिमानुकूल कर्तव्य में लीन, अकर्त्तव्य से विमुख आचारवान् पुरुष ही आर्य है। अतः यह सिद्ध है कि जो व्यक्ति या समुदाय सदाचारसम्पन्न, सकल विषयों में अध्यात्म लक्ष्य युक्त, दोषरहित और धर्मपरायण है, वही आर्य कहलाता है। आर्यभट-गुप्तकाल के प्रमुख ज्योतिर्विद । ये गणित और खगोल ज्योतिष के आचार्य माने जाते हैं। इनके बाद के ज्योतिर्विदों में वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, द्वितीय आर्यभट, भास्कराचार्य, कमलाकर जैसे प्रसिद्ध ग्रन्थकार हुए हैं। इनका जन्मकाल सन् ४७६ ई० और निवासस्थान पाटलिपुत्र (पटना) कहा जाता है । गणित ज्योतिष का 'आर्य सिद्धांत' इन्हीं का प्रचलित किया हुआ है, जिसके अनुसार भारत में इन्होंने ही सर्वप्रथम पृथ्वी को चल सिद्ध किया। इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ 'आर्यभटीय' है। आर्यसमाज-प्राचीन ऋषियों के वैदिक सिद्धां की पक्षपाती प्रसिद्ध संस्था, जिसके प्रतिष्ठाता स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म गुजरात के भूतपूर्व मोरवी राज्य के एक गाँव में सन् १८२४ ई० में हुआ था। इनका प्रारंभिक नाम मूलशङ्कर तथा पिता का नाम अम्बाशङ्कर था। ये बाल्यकाल में शङ्कर के भक्त थे। इनके जीवन को मोटे तौर से तीन भागों में बाँट सकते हैं : ( १८२४-१८४५) घर का जीवन, (१८४५-१८६३) भ्रमण तथा अध्ययन एवं (१८६३-१८८३) प्रचार तथा सार्वजनिक सेवा । इनके प्रारम्भिक घरेलू जीवन की तीन घटनाएँ धार्मिक महत्त्व की हैं : १. चौदह वर्ष की अवस्था में मूर्तिपूजा के प्रति विद्रोह ( जब शिवचतुर्दशी की रात में इन्होंने एक चूहे को शिव की मूर्ति पर चढ़ते तथा उसे गन्दा करते देखा ), २. अपनी बहिन की मृत्यु से अत्यन्त दुःखी होकर संसार त्याग करने तथा मुक्ति प्राप्त करने का निश्चय और ३. इक्कीस वर्ष की आयु में विवाह का अवसर उपस्थित जान, घर से भागना। घर त्यागने के पश्चात् १८ वर्ष तक इन्होंने संन्यासी का जीवन बिताया। बहत से स्थानों में भ्रमण करते हुए इन्होंने कतिपय आचार्यों से शिक्षा प्राप्त की । प्रथमतः वेदान्त के प्रभाव में आये तथा आत्मा एवं ब्रह्म की एकता को स्वीकार किया। ये अद्वैत मत में दीक्षित हुए एवं इनका नाम 'शुद्ध चैतन्य' पड़ा । पश्चात् ये संन्यासियों की चतुर्थ श्रेणी में दीक्षित हुए एवं यहाँ इनकी प्रचलित उपाधि दयानन्द सरस्वती हुई । फिर इन्होंने योग को अपनाते हुए वेदान्त के सभी सिद्धान्तों को छोड़ दिया। दयानन्द सरस्वती के मध्य जीवन काल में जिस महापुरुष ने सबसे बड़ा धार्मिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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