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________________ १५४] अपिनाम-निपात नून-निपात ननु-निपात वन-निपात हन्द-निपात याव. ताव-निपात पुरत्थ-निपात तनियो सामञकण्डो [३, ११९०-११९० पन्हेसु पदपूरणे ) ॥ ११९०॥ ( पसंसा गरहा सजा स्वीकारादो ऽपि नाम . (-थ )। (निच्छये चाऽनुमानास्म सिया ) नून. (वितकने ) ॥ ९१॥ ( पृच्छाऽवधारणाऽनुजा सास्वनाऽऽलपने ) ननू. । वते (-कंस दया हास खेदालपन विम्हये ) ॥ ९२ ॥ ( वाक्यारम्भ विसादेसु हन्द. ( हासेऽनुकम्पने )। याव. ( तु ) ताव. ( साकल्य माणाऽवध्यवधारणे) ॥ ९३ ॥ (पाचि पुराग्गतो त्थेसु) पुरस्थो. ( पठमेप्यथ )। . ( पवन्धे च चिरातीते निकटागामिके ) पुरा. ॥ ९ ॥ (निसेधे बाक्यालंकाराऽवधारणपसिद्धिसु। खल्वा-सन्ने तु) अभितो. (भिमुखोभयतो दिके ) ॥ ९५ ॥ काम ( यद्यपि सहत्थे एकसत्थे च हिस्सति । ( अश्रो ) पन, (विसबम्मि तथैव पद पूरणे ) ॥ १६ ॥ हि. ( कारणे विसेसावधारणे पदपूरणे )। तु. ( हेतु बजे तत्थाथ ) कु-( पापेऽसत्थःच्छने ) ॥ ९७ ॥ पुरा-निपात खलु-निपात अभितो-निपात काम-निपात पन-निपात हि-निपात तु-निपात कु. निपात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016096
Book TitleAbhidhaappadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages342
LanguagePrakrit, Pali
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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