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________________ अमरकोषः [प्रथमकाते१ आमोदः सोऽतिनिहरी २ वाच्यलिङ्गत्वमागुणात् ॥१०॥ ३ समाकर्षी तु निर्हारी ४ सुरभिर्घाण तर्पणः । इष्टगन्धः सुगन्धिः स्या५दामोदी मुखवासनः ॥ ११ ॥ ६ पूतिगन्धिस्तु दुर्गन्धो ७ विन स्यादामगन्धि यत् । ८ शुक्लशुभ्रशुचिश्वेतविशदश्येत पाण्डराः ॥१२॥ अवदातः सितो गोरो वलक्षो धवलोऽर्जुनः । हरिणः पाण्डुरः पाण्डु:-- उत्पन्न जनमनोहर गन्धविशेष या बकुलके गन्ध' का १ नाम है । 'आमोदः (पु), 'अत्यन्त बढ़ियां गन्ध या कस्तूरीके गन्ध' का १ नाम है ॥ २ यहां से 'गुणे शुक्लादयः पुंसि (१।५।१७) के पूर्वतक सब शब्द त्रिलिङ्ग हैं। ३ समाकर्षी (= समाकर्षिन् ), निर्हारी (= निहारिन् । २ त्रि), 'दूरस्थ सुगन्धित पदार्थ' के २ नाम हैं । ४ 'सुरभिः, घ्राणतर्पणः, इष्टगन्धः, सुगन्धिः (४ त्रि), 'सुगन्धि' के ५ नाम हैं (इनमें 'सुरमि' नाम 'चम्पक के गन्ध' का भी है)। ५ आमोदी (= आमोदिन् ), मुखवासनः (भागुरि म. भगुरुवासनः । २ त्रि), 'मुखको सुगन्धित करनेवाले पान आदि' के २ नाम हैं । ('मुखवासनः' नाम 'कपूरके गन्ध' का भी है' )॥ ६ पूतिगन्धिः, दुर्गन्धः ( २ त्रि ), 'दुर्गन्धि, बदबू' के २ नाम हैं ॥ ७ विनम् (त्रि ), 'विना पके हुए मांस आदिकेगन्ध' का नाम है। ८ शुक्ल:, शुभ्रः, शुचिः, श्वेतः, विशदः, श्येतः, पाण्डरः, अवदातः, सितः, गौरः, वलक्षः ( + अवलक्षः), धवलः, अर्जुनः, हरिणः, पाण्डुस, पाण्डः (१६ त्रि), 'सफेद, उजले के १६ नाम हैं । ('मतान्तरसे 'शुक्ल' आदि १३ नाम 'सफेद' के हैं और मन्तवाले 'हरिणः' भादि ३ नाम 'पाण्डुर' अर्थात् 'कुछ पीलापन लिये हुए सफेद' के हैं)॥ १-२.३. 'कस्तूरिकायामामोदः कर्पूरे मुखवासनः । बकुळे स्यात्परिमलश्चम्पके सुरभिस्तथा ॥ १॥ इति ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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