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________________ कालवर्ग: ४ ] मणिप्रभाव्याख्यासहितः । प्रशस्तवाचकान्यमूरन्ययः शुभावहो विधिः ॥ २७॥ दैवं दिष्टं भागधेयं भाग्यं स्त्री नियतिविधिः । ३ हेतुर्ना कारणं बीजं ४ निदानं त्वादिकारणम् ।। २८ ॥ ५ क्षेत्र आत्मा पुरुषः ६प्रधान प्रकृतिः स्त्रियाम् । ७ विशेषः कालिकोऽवस्था८गुणाःसत्त्वं रजस्तमः ।। २९ ॥ ९ जनुर्जननजन्मानि जनिरुत्पत्तिरुद्भवः । १० प्राणी तु चेतनो जन्मी जन्तुजन्युशरीरिणः ॥ ३०॥ उखा, तल्लनः (२ पु), ये ५ किसी द्रव्यवाचक शब्द के साथ समस्त होकर अन्तमें रहनेसे उसकी श्रेष्ठताको प्रकट करते हैं । इनका स्वतन्त्र प्रयोग नहीं होता है। जैसे-'गोमतल्लिका, गोमचर्चिका, गोप्रकाण्डम् , गवोद्धः, गोतलजा,.....")॥ अयः (पु)'शुभकारक भाग्य' का । नाम है । २ दैवम् , दिष्टम् , भागधेयम् , भाग्यम (४ न), नियतिः (सो), विधिः (पु), 'भाग्य' के ६ नाम हैं । ३ हेतुः (पु), कारणम् , धोत्रम् ( २ न ), 'कारण' के ३ नाम हैं । ४ निदानम् (न), 'मूल कारण' का नाम है ॥ ५ क्षेत्रज्ञः, आश्मा (=आस्मन् ), पुरुषः (३ पु), 'शरीरकी अधिष्ठात्री देवता के ३ नाम हैं । ६ प्रधानम् (न), प्रकृतिः (स्त्री), 'सत्त्वगुण, रजोगुण और तमो. गुणकी साम्यावस्था के २ नाम हैं। __अवस्था (स्त्री), 'समयकृत विशेष' अर्थात् 'उम्र'का । नाम है। (जैसे-लड़कपन, जवानी, गुढ़ापा, "...")॥ ८ सयम , रजः ( = रजस। + रजः = रज, पु), तमः (=तमस) + तमः,तम, पु । ३ न), ये ३ 'प्रकृति के धर्म हैं। उनका क्रमशः 'सावगुण, रजोगुण और तमोगुग' यह १-१ नाम है ॥ ९ अनुः (जनुस), मननम्, सम्म ( = जन्मन् । + जम्मः = जन्म, पु। ३ म), जनिः (+पु), उत्पत्तिः (१त्री), उद्भवा (पु), 'उत्पत्ति' अर्थात् 'पैदा होने पा जन्म लेने के ६ माम हैं। १. पाणी (पाणिनमः , जन्मी (जन्मिन् ) , मन्युः, शरीरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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