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________________ ५३ अमरकोषः। [तृतीयकाडेदावौषधमृधापत्य हृदयोदरकाकुदम् (९३) पत्तनाजिरशृङ्गानद्वारबोंडमानसम् ध्वान्तं चाव्यक्तलिङ्गच भाणती यत्प्रयुज्यते' (९५) १ कोट-याः शतादिसङ्ख्याम्या वा लक्षा नियुतं च तत् । २ द्वयकमसिसुसन्नन्तं यदनान्तमकर्तरि ॥ २४॥ (भूषण), लाङ्गलम् (हल), दारु (लकड़ी), औषधम् (दवा), मृधम् (युद्ध), अपत्यम् (सन्तान ), हृदयम् (हृदय), उदरम् (पेट), काकुदम् (तालु), पत्तनम् (नगर), अजिरम (आँगन), शृङ्गम् (सींग या शिखर) अकम् (अनाज ), द्वारम् (दरवाजा), बहम् (मोरका पङ्ख), उदु (नक्षत्र), मानसम् (मनका भाव या कर्म वा मानसरोवर तालाब), ध्वान्तम् ( अन्धकार) और अध्यक्त (आफुट) लिङ्गवाले जो शब्द कहने में प्रयुक्त होते हैं वे सब शब्द नपुंसकलिङ्ग होते हैं ] ॥ 'कोटि' शब्द को छोड़कर अन्य ‘शत आदि संख्या-वाचक शब्द नपुंसकलिङ्ग होते हैं । जैसे- शतम् , सहस्त्रम्, अयुतम्, अर्बुदम् , लपम्,' और लक्षा' शब्द विकल्पसे नपुंसकलिङ्ग होता है पक्ष में स्त्रीलिङ्ग 'लक्षा' होता है। उसी (लक्षा) का पर्याय नियुतम्' भी नपुंसकलिङ्ग है । "कोटि' शब्द स्त्रीलिङ्ग है। 'शतादि' ग्रहण करने से 'विंशतिः, नवतिः, सप्ततिः,......" नपुंसकलिङ्ग नहीं होते हैं । २ अस १, इस २, उस् ३, अन् ४, अन्त में हो जिनके ऐसे दो पच (स्वर) वाले शब्द नपुंसकलिङ्ग होते हैं। और 'अन' अन्त में हो जिसके ऐसे 'कर्ता' से भिन्न शरद ५,नपुसकलिङ्ग होते हैं । (क्रमश: उदा.-१यशः(= यशस्), पयः (= पयस), मनः (=मनस्),तपः (= तपस् ),.....सर्पिः (= सर्पिस् ), ज्योतिः (= ज्योतिस ), = हविः (= हविष ), ...। ३ धनुः (धनुस् ), वपुः (= वषुस), यजुः (= यजुस ), + +। वर्म (= वर्मन्), चर्म (= चर्मन् ), कर्म (= कर्मन् ), साम ( सामन् ), ....."। ५ गमनम् , १. 'कोटि-कक्षा' शब्दयोस्त्रीलिङ्गत्वे उदाहरणम् 'कियती पत्रसहस्रा कियती लयाऽथ कोटिरपि कियती। औदार्योन्नतमनसा रस्नमती वसुमती कियती' ॥ १॥ इति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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