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________________ अव्ययवर्गः ४] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।। १ समन्ततस्तु परितः सर्वतो विश्वगित्यपि। २ 'कामानुमती काम३मस्योपगमेऽस्तु च ॥१३॥ ५ ननु च स्याद्विरोधोक्तौ ५ कश्चित्कामप्रवेदने । ६ निःषमं दुःषमं गहाँ ७ यथावं तु यथायथम् ॥ १४ ॥ ८ मृषा मिथ्या च वितथे ९ यथार्थ तु यथातथम् । १० स्युरेवं तु पुनर्वै वेन्यवधारणवाचकाः ॥ १५ ॥ ११ प्रागतीतार्थकं १२ नूनमवश्यं निश्चये व्यम् । १३ संचवर्षे१४ऽबरे त्व१ि५गामेवं १६स्वयमात्मना ॥१६॥ १ समन्ततः (= समन्ततस्), परितः (= परितस), सर्वतः (= सर्वतस), विश्वक, ४ का 'चारों (सब) तरफ अर्थ है ॥ २ कामम् , ' का विना इच्छासे स्वीकार ( अनुमति ) अर्थ है ॥ ३ अस्तु, १ का 'असूया-पूर्वक स्वीकार' अर्थ है ॥ ४ ननु च ( + नाम ), १ का विरोधोक्ति' अर्थ है । ५ कच्चित् , ' का 'इष्ट प्रश्न' अर्थ है ॥ ६ निःपमम् , दुःषमम् , २ का निन्दनीय' अर्थ है ॥ ७ यथास्वम् , यथायथम् , २ का 'यथायोग्य' अर्थ है ॥ ८ मृषा, मिथ्या, २ का 'असत्य' अर्थ है ॥ १ यथार्थम् , यथातथम् , २ का 'सत्य' अर्थ है ॥ १० एवम् , तु, पुनः ( = पुनर ), वै, वा, ५ का निश्चय' अर्थ है ॥ ११ प्राक् , १ का 'बीता हुआ, पहले समय में अर्थ है ॥ १२ नूनम् , अवश्यम् , २ का निश्चय (जरूर ) अर्थ है ॥ १३ संवत् , १ का 'वर्ष, साल' अर्थ है । १४ अर्वाक् , ' का 'पुराने समयके बाद' अर्थ है ॥ १५ आम् , एवम् , २ का 'हाँ' अर्थ है । १६ स्वयम् , १ का 'आपसे आप' अर्थ है॥ १. 'आकामानुमतौ' इति पाठान्तरम् । २. 'ननु च' निपातदयस्य समाहारद्वन्दः' इति मा० दी० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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