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________________ मानार्थवर्गः३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः । छिद्रात्मीयविनावहिरवसरमध्येऽन्तरात्ममि च। १ मुस्तेऽपि पिठरं २ राजकशोरुण्यपि नागरम ।। १८८ ।। ३ शार्वरं त्वन्धतमसे 'धातुके मालिङ्गकम् । ४ गौरोऽरुणे सिते पीते ५ व्रणकायेंऽप्यनकरः ॥ १८९ १ ६ जठरः कटिनेऽपि स्या ७ दधस्ताददि चाधरः । ८ अनाकुलेऽपि चैकाग्री ९ व्यगोव्यासक्त आकुले ।। १९०॥ मोदनान्तरस्तण्डुलः अर्थात मा लिये चावल ,....... .. ), छन्द, श्रारमीय (अपना), दिशा, बाहर, अवसर, श्रीम, अन्तराम, Rदृश्य, २, ३५ अर्थ हैं। "पिठरम्' (न) के मोथा पप, स्थाली (बटलोली), मथनी ३ अर्थ हैं । २ नागरम' (न) के सोंठ, नागरमोथा, १ अर्थ और 'नागरः' (त्रि) के नगरवासी या नगरमें होनेवाला, चतुर, २ अर्थ हैं । ३ 'शार्वरम्' (न ) का घोर अन्धकार १ अर्थ; 'शार्वरम्' (त्रि) का धातुक, १ अर्थ और 'शार्वरः' (पु) का घातुक हाथी, । अर्थ है ॥ ४ 'गौरः' (त्रि) के अरुण, सफेद (गोर ), पीला, विशुद्ध, ४ अर्थ; गौरः' (पु) के पीला सरसों, चन्द्रमा, २ अर्थ और 'गौरः' (पु न )का पद्मकेसर, १ अर्थ है। __ ५ 'अरुष्करः' (पु) का 'भेलावा' नामकी ओषधि, । अर्थ और 'अरुकरः' (त्रि) का घाव करनेवाला, १ अर्थ है ॥ ६ 'जठरः' (नि) का कठोर, । अर्थ; 'जठरः' (पु न) का पेट, । अर्थ और 'जठरः' (पु) का बूढा, । अर्थ है ॥ ७ 'अधरः' (वि) के नीचे, हीन, २ अर्थ और 'अधरः' (पु) का मोठ, १ अर्थ है ॥ ८ 'एकाग्रः' (त्रि) के अनाकुल (स्वस्थ ), एकान्त, २ अर्थ हैं । ९ 'व्यग्रः' (त्रि) के अनेक कार्यों में फंसा हुआ (चन्चल), व्याकुल, १ अर्थ हैं १. धातुकेभे नृलिङ्गकम्' इति पाठान्तरम् । २. 'व्रणकार्येऽप्यरुष्कर' इति पाठान्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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