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________________ स्वर्गवर्गः १] मणिप्रभा-भाषाटीकासहितः । १ 'प्रकम्पनो महावातो,२ झंझावातः सवृष्टिकः' (२६) ३ प्राणोऽपानः समानचोदानव्यानौ च वायवः ॥ ६३ ।। ४ 'हृदि प्राणो गुदेऽपान, समानो नाभिमण्डले (२७) उदानः कण्ठदेशे स्यावयानः सर्वशरीरगः' (२८) शरीरस्था इमे ५ रहस्तरसी तु रथः स्यदः । जवो ६ऽथ शीघ्रं त्वरितं,लघु क्षिप्रमरं द्रुतम् ॥ ६४ ॥ सत्वरं चपलं तूर्णमविलम्बितमाशु च। सततानारताश्रान्तसन्तताविरतानिशम् . ॥६५॥ नित्यानवरसाजनमप्य ८ थातिशयो 'भरः। अतिवेलभृशात्यतिमात्रोद्गाढनिर्भरम् , ॥६६॥ तीवेकान्तनितान्तानि गाढबाढढानि च। [प्रकम्पनः (पु), 'आँधी' का १ नाम है ॥ २ [झंझावातः (पु) 'वर्षाके सहित हवा' अर्थात् झपसी का , नाम है ] ॥ ३ प्राणः, अपानः, समाना, उदानः, व्यानः (५ पु), ये ५ 'शरीरमें रहने वाले वायु' हैं। [हृदय में 'प्राण', गुदामें 'अपान', नाभिमण्डलमें' 'समान', कण्ठदेशमें 'उदान' और सम्पूर्ण शरीर में 'व्यान' (५ पु) नामक वायु रहता है । ५ रहः (= रंहस), तरः (=तरस्। २ न), रयः, स्यदः, जवः (१), 'वेग' के ५ नाम हैं। ६ शीघ्रम्, स्वस्तिम , लघु, क्षिप्रम, अरम द्रुतम् , सस्वरम्, चपलम् , सूर्णम् , अविलम्बितम् , आशु (११ न ), 'शीघ्र' के ५१ नाम हैं । ७ सततम्, अनारतम्, अश्रान्तम् , सन्ततम्, अविरतम् , अनिशम्, नियम, अनवरतम् , अजस्रम् ( ९ न ) "नित्य' के ९ नाम हैं। (इनमें से 'सतत' शब्दका प्रयोग जहाँ बीच में दूसरा काम नहीं किया जाय, वहीं होता है। जैसे-यह काम सतत करता है अर्थात् निरन्तर करता है) अतिशयः, भरः (२३), अतिवेलम्, भृशम्, अस्पर्थम्, अतिमात्रम्, उदातम्, निर्भरम, तीव्रम्, एकान्तम्, नितान्तम्, गाढम्, बातम्, तम् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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