SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 486
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७ नानार्थवर्गः ३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः। १७ -१ उत्सेवः काय उन्नतिः । २ पर्याहार मार्गश्च विधौ बीवधौ च तो।। ९६ ॥ ३ परिधिर्यशियतरोः नाखानामुपसूर्यके । ४ वधक व्यलनं चेतःपीडाधिष्ठानमाधयः ॥ ९७ ॥ ५ स्युः समर्थननीयाकनियमाश्च समाधयः । ६ दोषोत्पादेऽनुबन्धास्यात्प्रत्यादिधिनश्वरे।। ९८ ॥ मुख्यानुयायिनि शिशौ प्रकृतस्यानुवर्तने ।। , 'उत्सेधः' (पु) के शरीर, उन्नति (ऊँचाई ), २ अर्थ हैं । 'विवधः, वीवधः' (२ पु) के वहँगी या काँवर, रास्ता, बोझ, ३ अर्थ ॥ ३ 'परिविः' (पु) के यज्ञ-सन्बन्धी पेड़ (पलाश, शमी आदि) की शाखा, परिवेप नामका सूर्यके चारों तरफवाला घेरा, गोलाई, ३ अर्थ हैं । ___४ 'माधिः' (पु) के बन्धक (ऋग लेने के समय विश्वास के लिये महाजनके पास रखी हुई चीज अर्थात् थाती, धरोहर), आपत्ति, मानसिक पीड़ा, अधिष्ठान, ४ अर्थ हैं ॥ ५'समाधिः' (पु) के समर्थन, चुप रहना, नियम ( अपनेको ब्रह्मरूप' समझना), ३ अर्थ हैं । ६ 'अनुबन्धः' (पु) के दोष लगाना, नष्ट होनेवाले (प्रकृति, प्रत्यय, आगम, आदेश आदिमें इत्संज्ञा होनेपर लुप्त होनेवाले) अक्षर ( जैसे-एध, डुपचष् , सु, औट , तिप् , ङीष , गुट नुट् , धुट् , नुम् ,'' में क्रमशः अकार, हु तथा अष, उ, "वर्ण), पिता आदि श्रेष्ठोंकी आज्ञा माननेवाला बालक, प्रकरणागत विषयोंका अनुवर्तन (जैसे-वैरानुन्धः,... ) ४ अर्थ हैं । १. सूतसंहितायां समाधिलक्षणमुक्तन्तद्यथा 'सोऽहं ब्रह्म न संसारी न मत्तोऽन्यत्कदाचन । इति विद्यात्स्वमात्मानं स समाधिः प्रकीर्तितः' ॥ इति ।। अन्यच्च-समाधि'तु समाधानं जीवात्मपरमात्मनोः । ब्रह्मण्येव स्थितायां स समाधिः प्रत्यगात्मनः ॥ इति । भगवता पतञ्जलिना योगसूत्रेऽपि 'तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूप शून्यमिव समाधिः'।। इति यो० सू० ४ । ३ इति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy