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। नानार्थवर्ग:३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
४५१ १ अधदातः मिते पीते शुद्ध २ यद्धार्जुनौ सितौ ॥ ८॥ ३ युक्तेऽतिसंस्कृते मर्षिण्यामनीतो ४ 5 संस्कृतम् ।
कृत्रिमे लक्षणोपेतेय ५ बन्नोऽध पनि ।। ८१ ॥ ६ ख्याते हृष्टे प्रतीतो ७ऽभिजातस्तु कुलजे बुधे । ८विविक्तो पूतविजनी ९ मूर्चिततो सूढ होच्छ्यौ ।। ८२ ॥ १० वी चाम्लपरुषो शुको ११ शिनी अनेकौ ! १२ सत्ये साधी विद्यमाने घशस्तेऽभ्यहिते व सत् ।। ८३ ।। १३ पुरस्कृतः पूजितेऽरात्यनियुक्नेऽग्रतः कते। १'अवदातः' (त्रि) के सफेद, पीला, शुद्ध ३ अर्ध हैं ॥ २ सितः' (त्रि) बंधा हुआ, समाप्त, श्वेत, (सफेद) पदार्थ, ३ अर्थ हैं ।
३ 'अभिनीतः' (त्रि) के कृत्रिम (बनावटी, नकली), अत्युत्तम, सहनशील, ३ अर्थ हैं ॥
१ 'संस्कृतम्' (त्रि) के बनाया (संस्कार किया) हुआ, उत्तम, भूषित, ३ अर्थ और 'संस्कृतम्' (न) का पगिन्यादि के लक्षणोंसे सिद्ध अर्थात् संस्कृत भापा, १ अर्थ है ॥ __ ५ 'अनन्त' (त्रि) का अन्तरहित, १ अर्थ, 'अनन्तः ' (पु) के शेष नाग, विष्णु, २ अर्थ और 'अनन्तम्' (न ) का आकाश, १ अर्थ है ॥
६ 'प्रतीतः' (त्रि) के प्रसिद्ध, प्रसन्न, जाना हुआ, ३ अर्थ हैं ।
७ 'अभिजातः' (त्रि) के श्रेष्ठ कुलमें उत्पन्न (खान्दानी), विद्वान् , न्याययुक्त, ३ अर्थ हैं ।
८ विविक्तः (त्रि) के पवित्र, एकान्त, विवेकवाला, ३ अर्थ हैं । ९ 'मूच्छितः' (त्रि) के मूर्ख, वृद्धिसे युक्त, बेहोश, ३ अर्थ हैं । १० 'शक्तः' (त्रि) के खट्टा (काजी), कठोर, २ अर्थ हैं । ११ 'शितिः' (त्रि) के सफेद, काला, २ अर्थ हैं ॥
१२ 'सत्' (त्रि) के सत्य, साधु (सजन), विद्यमान, प्रशस्त (उत्तम), पूजित, धीर, मान्य, ७ अर्थ हैं ।
१३ 'पुरस्कृतः' (त्रि) के पूजित, शत्रुसे आक्रान्त, आगे किया हुआ, श्रेष्ठ, ४ अर्थ हैं।
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