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________________ नानार्थवर्ग:३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः । ४४३ १ प्रवणं क्रमनिम्नोा प्रह्वे ना तु चतुष्पथे ।। ५६ ॥ २ संकीर्णी 'निचिताशुद्धाश्विरिणं शून्यमूषरम् । ४ 'सेतो च धरणो ५ वेणी नदीभेदे कचोच्चये (४२) इति णान्ताः शब्दाः। अथ तान्ताः शब्दाः। ६ देवसूर्यो विवस्वन्तौ ७ सरस्वती नदार्णवौ ॥ ५७ ॥ ८ पक्षिताक्ष्यौँ गरुत्मन्तौ ९ शकुन्तौ भासपक्षिणौ। १० अग्न्युत्पाती धूमकेतू ११ जीमूतो मेघपर्वती ।। ५८॥ १ 'प्रवणम्' (त्रि) के ढालू जमीन, नम्र, २ अर्थ और 'प्रवणः' (पु) का चौरास्ता, १ अर्थ है ॥ २ 'संकीर्णः' (त्रि ) के च्याप्त (फैला या भरा हुआ ), अशुद्ध ( दो जातियोंका मेल), २ अर्थ हैं । ३ 'इरिणम्' (+इरणम् , ईरणम् , ईरिणम् , विरिणम् । न ) के खाली स्थान, ऊसर जमोन, २ अर्थ हैं । ४ ['धरण:' (पु) के पुल, बाँस यातार, काँटा आदिका घेरा, २ अर्थ हैं । ५ [ 'वेणी' (स्त्री), के नदी-विशेष केशकी चोटी २ अर्थ हैं ] ॥ इति णान्ताः शब्दाः । अथ तान्ताः शब्दाः। ६ 'विवस्वान्' ( = विवस्वत् पु), के देवता, सूर्य हैं । ७ 'सरस्वान्' (= सरस्वत् पु) के नद (शोणभद्र, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र आदि), समुद्र, २ अर्थ हैं ॥ ८ 'गरुत्मान् ( = गरुत्मत् पु) के पक्षी, गरुड़ २ अर्थ हैं । ९ 'शकुन्तः ' (पु) के गिद्ध, चिड़िया-मात्र २ अर्थ हैं ॥ १० धमकेतुः (पु) के आग, भविष्य में होनेवाले उत्पातका सूचक तारा-विशेष, २ अर्थ हैं। ११ 'जीमूतः' (पु) के बादल पहाड़ २ अर्थ हैं । १. 'निचिताशुद्धावीरिणम्' इति पाठान्तरम् ॥ ___२. सेतो"कचोच्चये' ईत्ययं क्षेपकांशः क्षी० स्वा० व्याख्यानेऽपि मूलमात्रमुपलभ्यते ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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