SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 451
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२२ अमरकोषः। [तृतीयकाण्डे खलानां खलिनी स्वल्याप्यरथ मानुप्यकं नृणाम् । ग्रामता जनता धूम्या पाश्या गल्पा पृथक्पृथक् ॥ ४२ ॥ अपि. साहस्रकारोषवार्मणाथर्वणादिकम् । इति संकीर्णवर्गः ॥ २॥ ३. अथ नानार्थवर्गः। ३ नानार्थाः केऽपि कान्तादिवर्गेष्वेवान कीर्तिता । भूरि प्रयोगा ये येषु पर्यायेष्यपि तेषु ते ॥१॥ , खलिनी, खल्या ( २ स्त्री ), 'स्खलिहानके समूह के नाम हैं। २ मानुष्यकम् , ग्रामता, जनता, धूम्या, पाश्या, गल्या (५ स्त्री), 'साह. सम् , कारीषम् , वार्मणम् , पाथवर्णम् (शे० ५ न ), आदि (आदिसे 'चार्मणम् , आङ्गारम , ..... ), 'मनुष्य, ग्राम, जन, धूम, पाश (जाल ), बड़ा काश, हजार, कडरा ( उपला या गोहरा), कवचधारा, अथर्वण, मादि (मादिसे चमड़ा, अङ्गार,... ), इनके समूह' का क्रमशः १-१ नाम है। इति संकीर्णवर्गः ॥३॥ ३. अथ नानार्थवर्गः। ३ वश्यमाण (भागे कहे जानेवाले ) इस कान्तादि (बादिसे-खान्त गान्त, बान्त,.......... ) वर्ग में अनेक अर्थवाले भी कई शब्द कहे गये हैं जो पहले पायों में नहीं कहे गये हैं और पण्डित-जनोंने काव्य-पुराण आदि प्रमों में 'पृथुक, गरुमत् , रजस्' आदि जिन शब्दों का बहुधा प्रयोग किया है वे (शुक, गहस्मत, रजस् मादि) शब्द पहले स्वर्गवर्ग आदिके पर्यायों में तथा यहाँ भी कहे गये हैं। (जैसे-पृथुक शब्द 'पोतः पाकोऽर्भको डिम्मा पृथुका शावकः विद्यः' (२५) यहाँ 'बालक' अर्थमें और 'पृथुकः स्थाश्चिपिटक:' (A ) वहाँ 'पिका' अर्थ में कहे जानेपर भी इस नानार्थवर्गमें 'पृथुक. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy