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________________ ३८३ विशेष्यनिघ्नः ] मणिप्रभायाख्यासहितः। -~-१ सन्नद्धे स्वाततायी वधोद्यते ॥४४॥ २ द्वेष्ये विगतो ३षभ्यः शीर्षच्छेद्य इमौसमौ। ४ विध्यो विषेण यो वध्यो ५ मुसल्या मुसलेन यः॥ ४५ ॥ ६ शिश्विदानोऽकृष्णकर्मा ७ चपलश्चिकुर समौ । 'आततायी ( - आततायिन् त्रि), 'आततायी' अर्थात् 'मारने के लिये तैयार' का १ नाम है ॥ २ द्वेष्या, अक्षिगतः (१ त्रि), 'आँखों में गड़े हुए' अर्थात् 'और करने योग्य' के २ नाम हैं। ३ वध्यः, शीर्षच्छेद्यः ( २ ), 'मारने योग्य, या शिर काट लेने योग्य' के २ नाम हैं । ४ विष्मः (त्रि), विष खिलाकर मारने योग्य' का १ नाम है ॥ ५ मुसक्ष्यः ( त्रि), 'मुसलसे मारने योग्य' का । नाम है ॥ ६ शिश्विदानः, अकृष्ण का ( = भकृष्णकर्मन् । २ त्रि), 'पुण्य कर्म करनेवाले' के ( तथा पाठभेदसे-'शिश्विदानः, कृष्णकर्मा ( = कृष्णकर्मन् । १ त्रि), 'पाप कर्म करनेवाले' के २ नाम हैं। ७ चपलः, चिकुरः ( २ त्रि), 'चपल या दोषको विना विचारे ही मारनेके लिए तैयार' के २ नाम हैं । ३. 'शिश्वदानः कृष्णकर्मा' इति पाठान्तरम् ॥ ४. वधस्योपलक्षगतयाऽन्येऽपि संग्र ह्यास्त आततायिनो यथा 'अग्निदो गोरदश्चैव शस्त्राणिर्धनापहः । क्षेत्रदारहरश्चैव षडेते आततायिनः ॥ १॥ इति ॥ 'उद्यतासिविषाग्निश्च शापोद्यतकरस्तथा । आथर्वणेन हन्ता च पिशुनश्चापि राजनि ॥ १ ॥ मार्यातिकमकारी च रन्ध्रान्वेषणतत्परः। एत्रमाद्यान्विजानीयारसर्वानेवाततायनि: ॥२॥ इति या स्मृति० २२१ मिताक्षरा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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