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________________ ३७५ विशेष्यनिध्नवर्गः ] मणिप्रभाव्याल्यासहितः । १ सर्वानीनस्तु सहभोजी २ 'गृध्नुस्तु गनः । लुब्धोऽभिलाषुकस्तृतक ३ समौ लोलुपलालुभौ ॥ २२ ॥ . सोन्मादस्तून्मदिष्णुः स्यादिविनीत सद्धतः । ६ मते शौण्डोत्करक्षीयाः ७ कामुके कामतानुकः॥ २३ ।। कम्रः कामयिताऽभीकः 'कमनः कामोऽधिकः। ८ को विदग्धे ९ व्यसनिपभद्रावुपप्लुते (१) 1 सर्वान्नान , न्निभोजी (= सर्वानी जिन् । त्रि), 'सब जाति के भन्नको खानेवाले औघड़ परमहंस आदि' के २ काम हैं । (ऐमा पारले होता था, वितु वर्तमान में तो स्पस्पर्शका विवाद अत्यन्त शिथिल होने से ऐसे हो व्यक्तियों की संख्या अधिक हो गयी है ) २ गृधनुः (+ गृधनः), गर्धनः, लुब्धः, अभिलाषुकः, हष्णक (- तृष्णज । + तृष्णकः । ५ त्रि), भा० दी. के मत से 'लोभी' के ५ नाम हैं । ('म हे. आदिके मत से गृध्नुः,......' २ नाम 'आकाक्षा करनेवाले' के और 'मुग्धः,....... ३ नाम 'अभिलाष करनेवाले' के हैं।)॥ ३ लोलुपः, लोलुभः (२ त्रि), 'अत्यन्त लोभी' ३ नाम हैं ॥ ४ सोन्माद ( + उन्मदः, सून्मदः), उन्मदिणुः (२ त्रि), 'पागल' के २ नाम हैं। ५ अविनीतः, समुद्धतः (+निमर्यादः । २ त्रि), 'उद्धत' के २ नाम हैं। ६ मत्तः, शौण्डः, उरकटः (+ उद्रितः), क्षीबः ( + क्षीबा = क्षीवन् । त्रि), 'मतवाले' के ४ नाम हैं। ७ कामुकः, कमिता ( = कमितृ), अनुकः, व म्रः, कामथिता (= कामयित), अभीकः, कमनः, कामनः, अभिकः (९ त्रि), 'कामी' के ९ नाम हैं। ८ [ छेकः, विदग्धः (२ त्रि), 'विदग्ध, चतुर' के २ नाम हैं ] ॥ ९ [ व्यसनी (= व्यसनिन् ), पचभद्रः, उपप्लुप्तः (+ विप्लुतः।। त्रि), 'ध्यसनी' के ३ नाम हैं॥ १. 'गृध्नस्तु' इति पाठान्तरम् ॥ २. 'उन्मदस्तून्मदिष्णुः' इति पाठान्तरम् ॥ ३. 'कामनः कमनोऽभिकः' इति तु युक्तः पाठः' इति क्षी० स्वा० ॥ ४. 'छेको........"विटः' इत्ययं क्षेपकांशः क्षी. स्वा० व्याख्यायां मूकमुपलभ्यते, इत्यतोऽस्य प्रकृतोपयोगितयात्र क्षेपकरूपेण मया निहितः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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