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________________ शूनवर्गः १.] मणिप्रभाब्याख्यासहितः। १ घतोऽस्त्रियामक्षवती कैतवं पण इत्यपि ॥४॥ २ पणोऽक्षेषु ग्लहो३ऽक्षास्तु देवनाः पाशकाच ते। ४ परिणायस्तु शारीणां समन्तात्रयनेऽस्त्रियाम् ॥४५॥ ५ अष्टापदं शारिफलं ६ प्राणितं समायः । ७ उक्का भूरिप्रयोगत्वादेकस्मिन्येऽत्र यौगिकाः॥१६॥ चूतः (पुन), बसवती (सी), कैतवम् (न), पण: (), 'जुमा? के नाम हैं। २ पणः, ग्लहा ( २ पु), 'जुएमें दायपर रक्खे हुए रुपया आदि के नाम हैं। ३ भवा, देवनः, पाशक: (+प्राशकः । ३ पु), 'पाशा' के ३ नाम है। ४ परिणायः (पुन), 'शारी (गोटी)को चलने के नाम हैं। ५ भष्टापदम् (पुन), शारिफलम् (न), बिसात' अर्थात् 'गोटियोंको रखने (खेलने के समय बिछाने के लिये कपड़े या काष्ठके बने हुए भाधारविशेष' के २ नाम हैं। ६ प्राणितम् (मा. दी। न),' समादयः (पु), 'बाजी रखकर पशु-पक्षियों ( मुर्गा, तीतर, भेंडा मादि) को लड़ाने के २ नाम है । ७ अन्धकार 'उक्ता-' इस श्लोकसे सब लिवाले शब्दों के सब लिङ्गों के नहीं कहने के दोषका निवारण करते हैं । इस 'शूदवर्ग' में अवषवार्थक (माद. शिक, मौरमिक मादि) शब्द काव्य, पुराण और कोषोंमें प्रायः पुंशिमें ही उपलब्ध होने के कारण यहाँ भी वे पुखित में ही कहे गये हैं, वे (माजिक, मौरजिक आदि ) शब्द उसके धर्म और योग आदिके वशसे अन्य जाति में वृत्ति होने पर तदनुसार (वृत्ति के अनुसार) खोलिङ्ग और नपुंसक भी होते हैं, ऐसा जानना चाहिये। और अवयवार्थको छोड़कर समुदाय में शक (कुम्मकार, कुलाल, करण मादि) जो शब्द यहां (शूद्रधनमें) केवल शिमें ही कहे गये हैं, वे (कुम्भकार, कुलाल, करण आदि) शब्द शुद्र आदि शब्दों के समान १. तदुक्तम् 'अप्राणिमिः कृतं बरहोके तद्बतमुच्यते। प्राणिमिः क्रियते यतु स विज्ञेयः समाइमः॥१॥ति॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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