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________________ स्वर्गवर्गः i:] मणिप्रभाव्याख्यासहितः । कृतोऽत्र भिन्नलिङ्गानामनुक्तानां क्रमादृते ॥ ४ ॥ , ही कहे गये हैं- 'सङ्कर' अर्थात् मिश्रण करके 'स्तुतिः स्तोत्रं स्तत्रो तुति:' इस तरह व्यतिक्रमसे नहीं कहा गया है । 'पीयूषममृतं सुधा (१|१|४८ ) ' यहाँ 'पीयूषन्तु सुधाऽमृतम्' इस तरह सङ्कर अर्थात् संमिश्रण नहीं किया गया है, किन्तु पहले नपुंसकलिङ्गवाले 'पीयूष और अमृत' इन दो शब्दों को कहने के उपरान्त ही स्त्रीलिङ्गवाले 'सुधा' शब्दको कहा गया है; इसी तरह 'प्रश्नोऽनुयोगः पृच्छा च (१।६।१० ) ' इत्यादि में भी समझना चाहिये । इस ग्रन्थ में जिन शब्दों के कहाँपर लिङ्ग कहे गये हैं; उन शब्दों के तो '१ द्वन्द्व, २ एकशेष और ३ सङ्कर' प्रायः किये ही गये हैं । पहला द्वन्द्व जैसे - १ 'स्त्रियां बहुध्वप्सरसः (१1१/५२ ) - २ 'कपिलवल .. ( १।१।६९ ) - ३ 'नैर्ऋतो यातुरक्षसी (१।१।६० ) ' - 8 'गन्धर्वो दिव्यगायने ( ३ । ३ । १३३ ) ' - '५ 'स्यात्किन्नरः 'किम्पुरुषः ( 1111७१ )' इन पाँच वाक्योंले '१ अप्सरस् २ यत्र ३ रक्षस्, ४ गन्धर्व और ५ किन्न' इन पाँच शब्दों के लिङ्ग कह दिये गये हैं; अतः 'विद्याधराष्परोयक्षरक्षो गन्धर्दकनराः ( १।१।११ ) यहाँ उक्त पाँच शब्दोंका द्वन्द्व किया ही गया है । समान लिङ्गवाले शब्दोंका तो यथावसर द्वन्द्व किया ही गया है; जैसे --' यक्ष कपिलैल विलश्रीदपुण्यजनेश्वराः (१1१/६९ ) ' यहाँ 'यक्ष, एकपिङ्ग, ऐलविल, श्रीद और पुण्यजनेश्वर' ये शब्द समानलिङ्ग अर्थात् पुंल्लिङ्ग ही हैं, अतः इनका द्वन्द्व किया ही गया है । दूसरा एकशेष जैसे – 'पतिपरन्योः प्रसूः श्वश्रूः श्वशुरस्तु पिता तयोः ( २/६/३१ ) इस वाक्य से 'श्वश्रू और श्वशुर' इन दोनों शब्दोंक लिङ्ग कह दिये गये हैं; अतएवं 'श्रश्रूश्वशुरौ श्वशुरौ ( २.६।३७ ) यहाँ 'श्वश्रू और श्वशुर' इन दोनों शब्दों का 'एकशेष' क्रिया हो गया है। तीसरा लङ्कर जैसे- 'श्रुतिः स्त्री वेद आम्नायस्त्रयी - ( १।६।३ ) यहाँ पहले खालिङ्गवाले 'श्रुतिः' शब्दको कहने के उपरान्त पुंल्लिङ्गवाले 'वेद और आम्नाय' इन दो शब्दों को कह कर फिर स्त्रीलिङ्गवाले 'त्रयी' शब्दको कहा गया है । 'प्रायश:' इस शब्दको कहने से 'पयः कीलालममृतं - . (१।१०।३) ' - 'दुग्धं क्षीरं पयः समम् (२|९|५१) ' इत्यादि वाक्यों से यद्यपि 'पवल' शब्दको नपुंसकलिङ्ग कह दिया गया है; तथापि 'पयः क्षीरं पयोऽम्बु च ( ३।३।२३३ ) ' यहाँ 'अम्बुचारे तु पयसी' इस तरह a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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