SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३ स्वर्गवर्गः1] मणिप्रभाब्याख्यासहितः । स्त्रीपुंनपुंसकं शेयं १ तद्विशेषविधेः क्वचित् ॥ ३॥ 'सु' विभक्तिको रुस्व-विसर्ग होने से 'प्रदोष' शब्द पुंल्लिङ्ग और 'रजनीमुख' शब्दकी 'सु' विभक्तिको अमादेश होनेसे 'रजनोमुख' शब्द नपुंसकलिङ्ग है.)॥ कहीं-कहीं साहचर्य (पासवाले शब्द के अनुसार ) से तीनों लिङ्ग समझना चाहिए। (स्त्रीलिङ्ग जैसे-'तडित्सौदामनी विद्युञ्चञ्चला चपला अपि (१॥३॥९) यहाँ स्त्रीलिङ्गवाले 'सौदामनी' आदि शब्दों के साहचर्य से सन्दिग्ध 'तडित् और विद्युत्' ये दोनों शब्द स्त्रीलिङ्ग हैं। पुल्लिङ्ग जैसे—'स्फूर्जथुर्वज्रनिर्घोषः (१॥३॥१०) यहाँ 'वज्रनिघोष' शब्दके साहचर्य से 'स्फूर्जथु' शब्द पुंल्लिङ्ग है । नपुंसकलिङ्ग जैसे-'इन्द्रायुधं शक्रधनुः (१॥३॥०) यहाँ 'इन्द्रा. युध' शब्दके साहचर्य से 'शक्रधनुष' शब्द नपुंसकलिन है)। १ कहीं-कहीं विशेष रूपसे कहनेपर स्त्रीलिज, पुंलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग जानना चाहिये ।(स्त्रीलिङ्ग जैसे-'धोदिवौ द्वे स्त्रियाम्.....(२१)यहां 'स्त्रियाम्' इस विशेष शब्दसे 'धो और दिव' ये दोनों शब्द स्त्रीलिङ्ग हैं। पुंल्लिन जैसे-'निधिर्ना शेवधि::.....(१९७१) यहाँ 'ना' इस विशेष शब्दसे 'निधि' शब्द पुल्लिङ्ग है । नपुंसकलिङ्ग जैसे-'रोचिः शोचिरुमे क्लीवे (१॥३॥३४) यहाँ 'क्लीबे' इस विशेष शब्दसे 'रोचिष और शोचिष' ये दोनों शब्द नपुंसकलिङ्ग हैं)॥ विशेषः-कहीं-कहीं सर्वनाम पदसे और विशेषण पदसे भी तीनों लिङ्ग जानने चाहिए । ( सर्वनाम पदसे स्त्रीलिक जैसे-'दिशस्तु ककुभः काष्ठा भाशाश्व हरितश्च ताः (१॥३१)' यहाँ 'ताः' इस स्त्रीलिङ्गवाले सर्वनाम पद से 'विक , ककुप, काष्ठा, आशा और हरित' ये पांचों शब्द स्त्रीलिङ्ग हैं। सर्वनाम पदसे पुंल्लिा जैसे-..........शुचिस्त्वयम् (१४६) यहाँ 'अयम्' इस सर्वनाम पदसे 'शुचि' शब्द पुंल्लिङ्ग है। सर्वनाम पदसे नपुंसकलिङ्ग जैसे... विषुवद्विषुवं च तत् (१।४।१४) यहाँ तत्' इस सर्वनाम पद विषुवत् और विषुव' ये दोनों शब्द नपुंसकलिङ्ग हैं ॥ विशेषण पदसे स्त्रीलिङ्ग जैसे...... संहूतिर्बहुभिः कृता (१॥६८) यहाँ 'कृता' इस स्त्रीलिङ्ग विशेषण पदसे 'संहूति' शब्द स्त्रीलिङ्ग है)। विशेष पदसे लिङ्गके अतिरिक्त वचन आदिका भी ज्ञान होता है। (जैसे-'स्त्रियां बहुष्वप्सरस..........( ५।५२) यहाँ 'स्त्रियां और बहुषु' इन दो विशेष शब्दोंके कहने से 'अप्सरस' शब्द केवल स्त्रीलिङ्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy