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________________ अमरको [द्वितीयकाण्डे१ जैस्तु जेता २ यो गच्छत्थतं विद्विषतः प्रति ।। ७४ ।। सोऽभ्यमियोऽभ्यमित्रीयोऽप्यभ्यमित्रीण इत्यपि । ३ ऊर्जस्वतः स्यादुर्जस्वी य 'ऊर्जातिशयान्वितः ।। ७५ ॥ ४ स्यादुरस्थानुरसिला ५ 'रथिका रथिरी स्थी। ६ काममा म्पनुकामीनो ७ हत्यन्तीनस्तथा भृशम् ।। ७६ ॥ ८ शूरी चार विकात ९ जेला जिष्णुश्च जित्वरः। १ जनः, जेलः (=जेतृ । २ त्रि), विशाल, आनेवाले' के नाम हैं । २ अभियः, अभ्यमित्रीयः, अभ्यमित्रोणः (६ त्रि), 'अपने पराक्रमसे शत्रुका सामना करनेवाले' के ३ नाम हैं ॥ ३ उर्जम्बलः, ऊर्जस्वी ( = अजस्विन् । २ त्रि), 'बहुत बलवान्' के २ नाम हैं ॥ ४ उरस्वान् ( = उरस्वत् ), उरसिलः (२ त्रि), 'चौड़ी छातीवाले' के २ नाम हैं। ५ रथिकः ( + रथिनः ), रथिरः, रथी ( = रथिन् । ३ त्रि), 'रथके स्वामी' के ३ नाम हैं । ६ कामगामी ( = कामजास्मिन् । + कामगामी = कामगामिन् ), अनुकामीन: (१ त्रि), मतलव भर (यथेष्ट) चलने वाले के नाम हैं। (महे. मत से पहले शब्दका पर्यायवाचक न हो हाने से १ हो नाम है )॥ ७ अस्यन्तीनः (त्रि ), 'अत्यन्त चलनेवाले' का । नाम है। ८ शूरः, वीरः, विक्रान्तः (३ त्रि), 'पहलवान, बहादुर' के ३ नाम है। ९ जेता (= जेतृ), जिष्णुः, जिस्वरः (३ त्रि), 'सर्वदा विजय करने. वाले' के ३ नाम हैं। ('जैसे-रामचन्द्र, इन्द्र और अर्जुन आदि)। १. 'कोंऽतिशयान्वितः' इति पाठान्तरम् ॥ २. 'रथिनो रथिको रथी' इति मा० दो० महे० सम्मतः पाठः। मूलस्थः क्षो. पा. मुकु० सम्मतः । 'रथिन इत्यपपाठ' इति च क्षो. स्वा० आहुः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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