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________________ २८८ अमरकोषः। [द्वितीयकाण्डे १ कृतहस्तः सुप्रयोगविशिखः कृत्तपुचत् । २ अपराद्धपृषत्कोऽसोक्ष्याधश्च्युतलायकः । ६८ ॥ ३ धन्वी धनुमानानुको निषायनी धतुधर । ४ स्यात्काण्डवांस्ड काण्डोस ५ शालीकः भक्तितिका १ ६९ ।। ६ याष्टीकधारी विचार नैस्त्रिशिकोहोल. स्वान्त ८ समा मालिककौन्तिकौ ।। ७ ।। ९ चर्मी फल पाणिः स्यात् कृतहस्तः, एप्रयोगविशि, कृपया १३ त्र), बाण चलाने में निपुण' के ३ नगर हैं। २ अपराद्धपृषरः (वि), 'निशाना चुके हुप' का १ नाम है ॥ ३ धन्धी (= शन्विन् ), अनुष्माञ्। - धनुष्मत् ), धानुरु, निषङ्गी (= निषङ्गिन् ), अत्री ( =अचिन् ! + शास्त्री = शसिन् ), धनुर्धरः ( ६ त्रि), 'धनुष धारण करनेवाले' के ६ नाम ४ काण्डवान् ( =काण्डवत् ), काण्डी ( २ ), 'बाण धारण करने वाले के २ नाल है ॥ ५ शाक्तीका, शक्तिहेतियः (त्रि), 'शक्तिनामक शस्त्र धारण करनेवाले' के २ नाम हैं ॥ ६ याष्टीकः, सारश्वधिकः (२ त्रि), 'लाठी और फरसा धारण करने पाले' का क्रमशः १-१ नाम है। ७ नैम्रिशिकः, असिहेतिः (भा. दी। २५), 'तलवार धारण करनेवाले २ नाम हैं। ८ प्रापिकः, कौन्तिकः (२ त्रि) 'प्रास और हन्त (भाला) धारण करनेवाले' । क्रमशः - नाम है । (ो मत से दोनों शब्द एकार्थक हैं)॥ ९ चौ ( = चर्मिन् ), फल कपाति: (२ त्रि), 'धर्मनामक हथियार (ढाल) धारण करनेवाले' के २ नाम है ॥ १. 'पश्वधः परशौ न दृष्टः, अतः 'यष्टिम्वधितिहेतिको' इति काश्मीराः पठन्ति' इति क्षी० स्वा० । किन्तु --कुठारस्तु परशुः पशुपवधौ । परश्वधः स्वधितिश्च ( अमि० चिन्ता० ३ ४५.) इति हेमचन्द्राचार्योक्तरुक्तहेतुदानमविधिकरम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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