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________________ २७६ अमरकोषः। [द्वितीयकाण्डे -१ राज्ञस्तु नृपलक्ष्म तत् । २ भद्रकुम्भः पूर्णकुम्भो ३ भृङ्गारः कनकालुका ।। ३२ ॥ ४ निवेशः शिवि पण्ढे ५ सज्जनं तूपरक्षणम् । ६ हत्यश्वरपादातं सेनाझं स्थाच्चतुत्यम् ॥ ३३॥ ६ बन्ती दन्तावलो हस्ती द्विरदोऽनेको विष्टः। मतगाजो गजओ नागः दुःअरे वारणा करी ॥३४ इभः स्तम्बरमः पद्मी ८ यूथ नाथस्तु यूधपः । १ नृपयम ( = नृचमन , न), 'राजा छात' का । नाम है ॥ २ भद्रकुम्मा, पूर्णकुम्भः ( २ ), 'मङ्गल के लिये जल से भरे हुए घड़े के २ नाम हैं। ३ भृङ्गार (पु), कनकालुका ( स्त्री), 'भारी, हथहर ( स्वर्णके पात्र विशेष ), के २ नाम हैं । ४ निदेशः (इ), शिविरम् ( = शिविरम् । न ), 'सेनाके ठहरनेकी जगह' के २ नाम हैं। ५ सज्जनम् , उपरक्षणम् (२ न), 'सेनाकी रक्षाके वास्ते नियम किये हुए पहरे' के २ नाम हैं। ६ सेनाङ्गम (न), 'हाथी, रथ, घोड़ा और पैदल ये ४ सेनाके' या' हैं। ( 'ना, जहाज आदिका रथमें, किरात, मशाह आदिका पैदल में और या मादिका हाथी में अन्तर्भाव होने से उनका पृथक प्रहण नहीं किया गया है) ७ दन्ती ( - दन्तिन् ), दन्तावलः, हस्ती ( = हस्तिन् ), द्विरदः, अनेकपः, द्विपः, मनङ्गजा, गजः, नारः, कुञ्जरः, दारुणः, करी ( = करिन् ), हभा, स्तम्बरमा, पन ( = पद्मिन् । + सामना, सिन्धुरः, कुम्भी = कुम्भिन् । ३५ पु), 'हाशी' के १५ नाम है। ('यहांने श्लो. ४३ नक गजप्रकरण है' )॥ ___८ माथः, यूबषः (२ ), 'झुण्ड के स्वामी' के २ नाम हैं ॥ १. तदुत्तं हेमचन्द्राचार्यः'गजो वाजी रथः पत्तिः सेनानं स्याचतुर्विधम् ॥ इति अमि० चिन्ता० ३।४१५ ॥ ना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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