SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ अमरकोषः। [द्वितीयकाण्डे१ परिवित्तिस्तु तज्ज्यायान् २ विवाहोपयमौ समौ । तथा परिणयोद्वाहोपयामाः पाणिपीडनम् ॥ ५६ ॥ ३ 'न्यवायो ग्राम्यधर्मो मैथुनं निधुवनं रतम् । ४ त्रिवर्गो धर्मकामार्थ५श्चतुर्वर्गः समोक्षकैः ॥ ५७ ।। ६ सबलैस्तैश्चतुर्भद्रं ७ जन्याः स्निग्धा वरस्य ये। इति ब्रह्मवर्गः ॥ ७॥ परिवित्तिः (पु), "जिसका छोटा भाई विवाहित हो उस मविवाहित बड़े भाई' का । नाम है ।। विवाहः, उपयमः, परिणयः, हद्वाहः, उपयामः (५ पु), पणिपीडनम् (+पाणिग्रहणम्, करपीडनम,.....' । न ) 'विवाह' के ६ नाम हैं । ३ व्यवाया, प्राग्यधर्मः (२ पु), मैथुनम्, निधुवनम्, रतम् (३ न), 'मैथुन' अर्थात् 'स्त्री के साथ सम्भोग करने के ५ नाम हैं !! ४ निवर्गः (पु), 'अर्थ, धर्म और काम के समुदाय का । नाम है। ५ चतुर्वर्गः (पु), 'अर्थ, धर्म और काम और मोक्षके समुदाय' का। नाम है॥ ६ चतुर्भद्रम् (न), 'सुदृढ़ अर्थ, धर्म, काम और मोक्षके समुदाय' का नाम है ॥ ७ जन्यः (पु), 'समान अबस्थापाले वर ( दुल्हा) के प्रेमी या वधूकी पालकी ढोनेवाले' का 1 नाम है ॥ इति ब्रह्मवर्गः ॥ ७ ॥ १. 'व्यवायो ग्राम्यधर्मश्च रतं निधुवनं च सा' इति केचिस्पठन्ति' इति महेश्वरः ।। २. परिवेत्तुपरिवियोलक्षणं यथायेऽप्रजेप्वकलत्रेषु कुर्वते दारसंग्रहम् । ज्ञेयास्ते परिवेसारः परिवित्तिस्तु पूर्वजः ॥१॥ इति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy