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________________ अमरकोषः [ द्वितीय काण्डे १ अग्नित्रयमिदं त्रेता २ प्रणीतः संस्कृतोऽनलः । परिचाय्योपचाय्यावग्नौ प्रयोगिणः ॥ २० ॥ ३ समूह्यः यो गार्हपत्यादानीय दक्षिणाग्निः प्रणीयते । तस्मिन्नानाय्यो ५ प्रथाग्नायो स्वाहा च हुतभुप्रिया ॥ २१ ॥ ६ ऋक्सामिधेनी धाय्या च या स्यादग्निसमिन्धने । ७ गायत्रीप्रमुखं छन्दो २४६ १ त्रेता (स्त्री), 'दक्षिणाग्नि, गाईपत्याग्नि और आहवनीयाग्नि इन तीन अग्नियोंके समुदाय' का १ नाम है ॥ २ प्रणीतः (पु), 'मन्त्र से संस्कृत अग्नि' का १ नाम है ॥ ३ समूहः परिचाय्यः उपचाय्यः ( ३ पु ), 'यज्ञ - सम्बन्धी अग्निका स्थान- विशेष, या स्थान विशेषकी अग्नि' के ३ नाम हैं ॥ ● आमाच्यः (पु), 'गाईपत्यनामक अग्निसे लाकर मन्त्र से संस्कृत दक्षिणाग्नि' का १ नाम है ॥ ५ अभायी, स्वाहा, हुतभुप्रिया ( + अग्निप्रिया । ३ स्त्री ), 'अग्नि की स्त्री, स्वाहा' के मैं नाम हैं ॥ सामिधेनी, धाय्या ( २ स्त्री ), 'अग्निमें समिधा (लकड़ी) छोड़कर अग्निको जलानेमें प्रयोग किये जानेवाले मन्त्र' के २ नाम हैं ॥ • ७ छन्दः (= इन्दस्, न ), 'गायत्री आदि छन्द' का १ नाम है सक्का १, अत्युक्ता २, मध्या ३, प्रतिष्ठा ४, सुप्रतिष्ठा ५, गायत्री, उष्णिक् ७, अनुष्टुप् ८, बृहती ९, पक्ति १०, त्रिष्टुप् ११, जगती १२, अतिजगती १३, करी १४, अतिशकरी १५, अष्टि १६, अत्यष्टि १७, धृति १८ अतिष्टति १९, कृति २०, प्रकृति २१, आकृति २२, विकृति २३, संस्कृति २४, अतिकृति २५, रकृति १६, ये कुब्बीस 'छन्द होते हैं। किसी २ ने 'गायत्री उस्कृति तक २१ ही छन्द माने हैं' ) ॥ १. वृत्तरत्नाकरे केदारेण छन्दोलक्षणमुक्तम् । तथा हि'आरभ्येकाक्षरारपादादेकै काक्षर वर्द्धितैः । पृथक् छन्दो भवेत्पादैर्यावत्वविंशतिं गतम् ॥ १ ॥ इति वृ० १० १|१७ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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