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________________ [ २४ ] परिशिष्टके संकेत परिशिष्टमें पहले मूल ग्रन्थमें आये हुए शब्दको देकर उसके काण्डा, वर्गात और श्लोकाङ्क दे दिये गये हैं, फिर उस शब्दसे सम्बद्ध विषय लिखकर प्रमापक ग्रन्धके नाम भादि दिये गये हैं ॥ शब्द-सूचीके संकेत मूल ग्रन्थकी सूची देखनेका प्रकार-पहले शब्द, बादमें क्रमशः 'काण्डाङ्क, वर्गाङ्क और श्लोकाङ्क' दिये गये हैं। जैसे-'अ३४११' अर्थात् 'अ' शब्द तृतीय काण्ड के चतुर्थ अध्ययवर्गके ग्यारहवें श्लोक में आया है। ( देखिये पृ० ५.७)॥ क्षेपक और टीकास्थ शब्दकी सूची देखनेका प्रकार-क्षेपक और टीकास्थ शब्दोंकी सूची ११६ पृष्ठसे आरम्भ होकर १४९ पृष्ठों में समाप्त हुई है। उनमें से जो शब्द क्षेपकमें आये हैं, उन शब्दों के पहले अध्याय के क्रम से चलने वाला क्षेपकाङ्क, पकका शब्द और बादमें मूल अन्य के जिस स्थल में वह क्षेपकका शब्द भाया है, उस मूल ग्रन्थ के काण्ड, वर्ग और श्लोक के अङ्क दिये गये हैं। इसमें अर्द्धरलोककी गणना नहीं है। जैसे-४१ अंशुमालिन् १३३०' यहाँ पहले वेपकका अङ्क, बादमें क्षेपकका 'अंशुमालिन्' शब्द, फिर प्रथम काण्डके तृतीय 'दिग्वर्ग' ३० वें श्लोकके बाद वह 'अंशुमालिन्' शब्द मिलेगा। (देखिये पृष्ठ-३१)। कुछ शब्द क्षेपकसे सम्बद्ध होते हुए भी भूल पक में नहीं आये हैं, किन्तु हेपकसे भी बाहरी हैं। ऐसे शब्दों में क्षेपकाङ्कके भागे+ ऐसा चिह लगाया गया है। जैसे+५३+ आश्विन १४१३' है, इसे भी इसीप्रकार पृष्ठ १. में देखिये । यह शब्द क्षेपक में नहीं भाया है, किन्तु क्षेत्रककी टीका भाया है। weeken Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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