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________________ १६४ अमरकोषः। [द्वितीयकाण्डे१ श्रद्धालुर्दोहदवती २ निष्कला विगतार्तवा ॥ २१ ॥ ३ आपन्नसत्त्वा स्याद्गुर्विण्यन्तर्वत्नी च गर्भिणी। ४ गणिकादेस्तु गाणिक्यं गार्मिणं यौवतं गणे ॥ २२ ॥ ५ पुनर्भूर्दीधिषूरूढा द्विस्तस्या' दिधिषुः पतिः । ७ स तु द्विजोऽग्रेदिधिषूः सैव यस्य कुटुम्बिनी ॥ २३ ॥ १ श्रदालुः, दोहदवती ( २ स्त्री), 'गर्भ रहनेपर किसी वस्तु या कार्य को चाहनेवाली स्त्री' के २ नाम हैं ॥ __ २ निकला ( + निष्कली ), विगतार्तवा ( २ स्त्री), 'रजोधर्मसे हीन (जिसे रजोधर्म कभी भ होता हो या वृद्धावस्था के कारण समाप्त हो गया हो) स्त्री' के २ नाम हैं। ___ आपन्न पत्ता, गुर्विणी ( + गुर्वी ) अन्तर्वन, गर्भिणी (गर्भवती। ४ स्त्री ), 'गर्भवती स्त्रो' के ४ नाम हैं । ___ ४ गाणिक्यम् , गाभिणम् , यौवनम् (३ न ), 'वेश्याओं युवतियों और गर्भिणियोंके समूह' का क्रमशः १-१ नाम है। ५ 'पुनर्भूः, दोधिषूः ( + दिधीपूः, दिधिषुः, अदिधिषुः । २ स्त्रो), 'दो बार व्याही हुई स्त्री' के २ नाम हैं ॥ ६ दिधिषुः ( + विधिपूः, स्वा० म०। पु. ), "दो बार व्याही स्त्रीके पति का नाम है। ७ अग्रेदिधिषूः । ( + अग्रेदिधिषुः । पु), 'दो बार व्याही हुई स्त्रीके द्विजाति (ब्राह्मण, क्षस्त्रिय और वैश्य ) वर्णवाले पति' का । नाम है ॥ १. 'दिधिषूः पतिः' इति पाठान्तरम् ॥ २. तदुक्तं याज्ञवल्क्ये 'भक्षता च क्षता चैव पुनर्भूदिधिषूः पुनः' इति याज्ञ० १॥ ६७ ।। 'ज्येष्ठायां यद्यनूढायां कन्यायामुयतेऽनुजा । सा चाग्रेदिधिषुर्शया पूर्वा तु दिधिषुमंता' ॥१॥ इति । 'दिधिषूस्तत्पुन_दिरूढा स्यादिधिषुः पतिः । स तु द्विजोऽग्रेदिधिषूर्यस्य स्यात्सैव गेहिनी' ॥ १॥ - अमि० चिन्ता० ३११८९ इति ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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