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________________ ३४ अमरपद्ममुकुर *३५ बृहद्वृत्ति * ३६ X * ३७ गुरुबालप्रबोधिनी * ३८ X ३९ X * ४० अमरकोषपद विवृति *४१ कामधेनु [ १६ ] ... Jain Education International ... ... ... ... रंगाचार्य । X अध्यrय दीक्षित | भानुदीक्षित । मान्यभट्ट । लिंगमसूरि । x वंगदेशीय कोई विद्वान् यद्यपि आधुनिक अनेक विद्वानोंने भी इस ग्रन्थपर अनेक संस्कृत तथा हिन्दी टीकायें लिखी हैं, तथापि उनमें प्रत्येक शब्दोंका प्रचलित हिन्दी में अर्थ, किंगज्ञान, वचनज्ञान, शब्द के प्रातिपदिकादस्थाका शुद्ध स्वरूप, पाठान्तर, कठिन शब्दों की विवेचना, शब्दसे सम्बद्ध विषय या अन्य आवश्यकीय बातोंका समावेश नहीं होने से एक बहुत कमी चिरकालसे मेरे हृदय में खटक रही थी । इसीकी पूर्ति के लिये मैंने संस्कृत और हिन्दीमें इस ग्रन्यराजको क्रमशः टीका और टिप्पणी लिखकर इसे पूज्यपाद विद्वन्मुकुटमणि दार्शनिक सार्वभौम साहित्यदर्शनाद्याचार्य माध्वमतावलम्बी श्री १०८ गोस्वामी दामोदरलालजी महाराजको दिलाया । पूज्यपाद गोस्वामीजी महाराजने इस टीकाकी भूरि-भूरि प्रशंसा की, पूज्य गोस्वामीजीकी बतलायी हुई शैली से मैंने इल 'मणिप्रभा' नामक हिन्दी टोका और साथ में 'अमरकौमुदी' नामक संस्कृत टिप्पणी में अन्य आवश्यक बातोंका भी समावेश किया । सम्पूर्ण ग्रन्थ में लगभग सौ श्लोक क्षेपकके दिये गये हैं, मूल ग्रन्थमें आनेवाले शब्दोंके अतिरिक्त प्रसिद्ध १ बाहरी शब्द तथा मूल ग्रन्थ में आनेवाले शब्दोंके आंशिक समानाकार बाहरी वंगदेशीय टीकाकाका आधार हुई। इसके बाद किन्तु अन्य वंगदेशीय टीकाकारोंके पूर्व 'सुभूतिचन्द्र या बौद्ध सुभूति' ने कामधेनु टीका बनायी जिसका बंगाली टीकाकर्ताओंने अधिकतर 'उल्लेख किया है । सन् ११७३ ई० में बनी हुईं शरणदेवके 'दुर्घटवृत्ति' में 'सुभूति' का नाम मिलता है । x इस निशान में नाम नहीं कहा गया है । · For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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