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________________ अथ द्वितीयकाण्डम् वर्गभेदान् कथयति-- १ वर्गाः पृथ्वीपुरस्माभृद्वनौषधिमृगादिभिः । नृब्रह्मक्षत्त्रविशुदैः साझापाङ्गरिहोदिताः ॥ १॥ १. अथ भूमिवर्गः। २ भूर्भूमिरचलाऽनन्ता रसा विश्वम्भरा स्थिरा । . धरा धरित्रीधरणिःक्षोणिा काश्यपी क्षितिः ॥२॥ । इस द्वितीय काण्डमें अङ्गों और उपाङ्गोके सहित 'पृथ्वी, पुर, पर्वत, वनौषधि, मृगादि ('आदि' शब्दसे 'पक्षी, की' आदिका संग्रह हैं अथवा 'मृगादि' शब्द 'सिंहवाचक है ), मनुष्य, ब्रह्म, क्षत्रिय, वैश्य और शूदः ये.. वर्ग अर्थात् 'भूमिवर्ग १, पुरवर्ग २, शैलवर्ग ३, वनौषधिवर्ग ४,......कहे गये हैं। ('भूमिके मन-'मृत्, शाखा और नगर आदि तथा उपाङ्ग 'मृस्सा आदि पुरके अन-'आपण' आदि तथा उपाल 'विपणी' आदि पर्वत के अङ्ग-'शिला' आदि तथा उपाङ्ग 'मैनसिल, गेरु' भादि धातु, वनौषधि के अङ्ग-वृक्ष' आदि तथा उपाय 'फूल, फल' आदि; मृगके अङ्ग-हरु' आदि, तथा उपाङ्ग 'लोम' आदि एवं 'मृगादि'के आदि पदसे संगृहीत पक्षीके अङ्ग-'कीट, फतीङ्गा' आदि तथा उपाङ्ग 'चन्चु, पङ्ख' आदि हैं। इसी तरह अन्यान्य वर्गों का भी अङ्गोपाङ्ग समक्षना चाहिये)॥ . १. अथ भूमिवर्गः। २ भूः(= भू। + भूः, = भूर् , अ०), भूमिः (+भूमी), अचला, अनन्ता, रसा, विश्वम्भरा, स्थिरा, धरा, धरित्री, धरणिः (+धरणी), होणिः ( + क्षोणी, १. 'मृगादि शम्दस्यायमेवार्थः समुचितः, मृगान् पशूनत्तीति मृगादिरिति व्युत्पत्या 'मृगादि' शब्दस्य सिंहपर्यायलामसामञ्जस्यात् । अत एवाग्रे 'सिंहादिवर्ग'कथनं संगच्छरोडन्यथा मृगादिवर्गकथनस्यौचित्यात ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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