SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ अमरकोषः। [प्रथमकाण्डे१ मन्दाक्षं ह्रीस्त्रपा ब्रोडा लजा २ साऽपत्रपाऽन्यतः ॥ २३॥ ३ क्षान्तिस्तितिक्षाऽभिध्या तु 'परस्य विषये स्पृहा । ५ अक्षान्दिरी६िऽसूया तु दोषारोपो गुणेष्वपि ।। २४ ॥ ७ वैरं विरोधो विद्वेषो ८ मन्युशोको तु शुक्लियाम् । ९ पश्चात्तापाऽनुतापश्च विप्रतीसार इत्यपि ।। २५ ॥ १ मन्दाक्षम (+मन्दास्यम् । न), हीः, पा, वीडा ( + वीडः, पु), लज्जा ( ४ स्त्री), 'लज्जा ' के ५ नाम हैं। २ अपनपा (स्त्री), 'पिता आदि दूसरेसे लज्जा करने का । नाम है ॥ ३ शान्तिः, तितिक्षा (२ स्त्री), 'दूसरेकी उन्नतिको सहन करने' के २ नाम हैं। ४ अभिध्या (स्त्री), 'दुसरेकी सम्पत्ति आदिको चाहने' का , नाम है ॥ ___५ अक्षान्तिः, ईर्ष्या (२ स्त्री), 'ईया' अर्थात् 'दूसरे की सम्पत्ति को नहीं सहने के २ नाम हैं। ६ असूया (स्वी ), 'औद्धत्यसे किसीके गुण-विषयक काममें भी दोष निकालने' का १ नाम है। ('जैसे-किसीके दमाई होकर पुण्य करनेपर 'यह नाम के लिये पुण्य करता है। इस्यादि दोष निकालनेको “असूया' कहते हैं')॥ ७ वैरम. (ब), विरोधः, विद्वेषः (१), 'वैर करने के ३ नाम हैं ॥ ८ मन्युः, शोकः ( २ पु), शुक् (= शुच्, स्नी), 'शोक' के ३ नाम हैं। ९ पश्चात्तापः, भनुतापः, विप्रतीसारः ( +विप्रतिसारः । ३ पु), 'पछ. ताने के ३ नाम हैं । १............परस्य विषये स्पृहा' इति पाठान्तरम् ॥ २. तदुक्तम्-'असूयाऽन्यगुणीनामौद्धत्यादसहिष्णुता । दोषोद्धोषभूविभेदाऽवचाक्रोधेजितादिकृत्' ।। १ ।। इति सा० द० ३।१६६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy