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________________ ६६ आकर्ण आकर्ण १० प० सांभळवं; ध्यानथी सांभळवू आकर्णन न० ध्यानथी सांभळवं ते आकर्ष पुं० पोता तरफ खेंचवू ते (२) पाछं खेंची लेवं ते (३) धनुष्य खेंचवं ते (४) आकर्षण ; मोह (५) लोहचुंबक (६) कसोटीनो पथ्यर (७) पासा वडे रमवं ते लोहचुंबक आकर्षक वि० आकर्षे तेवू (२) पुं० आकर्षण न० खेंचाण (२) मोह आकल १०प० पकडवं; हाथमा लेवू (२) मानवं; गणवु (३) विचारवं; लक्षमा लेवू (४) बांधवू ; जकडवू (५) हलाव; डोलावQ (६) समर्पण कर, (७) फेंक (८) मापवू आकलन न० पकड - ग्रहण करत ते (२)बंधन; निग्रह (३)गणना; गणतरी (४) तपास (५) समजण आकल्प पुं० भूषण; शणगार (२) वेशरचना करवू ते आकल्पक पुं० उत्कंठापूर्वक याद कर्या आकल्पम्, आकल्पांतम् अ० कल्प पूरो थाय (१००० युग) त्यां सुधी; महाप्रलय थाय त्यां सुधी कारण विनानुं आकस्मिक वि० ओचितुं; अणधार्यु (२) आकार पुं० आकृति; घाट (२) देखाव; चहेरो (३) निशानी; लक्षण आकारण न०, आकारणा स्त्री० बोलावq ते; निमंत्र ते । आकारित वि० बोलावेल; निमंत्रेलु (२) कबूलेलु (३) मागेल; पडावेलु आकालिक वि० क्षणिक (२) कसमयनु आकाश पुं०, न० आकाश (२) पंचमहाभूतोमांनु एक महाभूत (३) खाली जगा; अवकाश (४) स्थान; स्थळ (५) प्रकाश (६) ब्रह्म आकाशग पुं० पक्षी; पंखी आकाशगंगा, आकाशगा स्त्री० स्वर्गगंगा आकूति आकाशभाषित न० रंगभूमि बहारनी कोई व्यक्ति साथे जाणे वात करतो होय ते रीते नटे करेली उक्ति आकाशयान न० आकागमां गति करतुं वाहन (२) आकाशमां थईने गति करवी ते आकाशवाणी स्त्री० आकाशमां उच्चारायेली – दैवी वाणी आकाशशयन न० खुल्लामां सूवं ते आकाशेश दि० जेने आकादा विना बीजी मिलकत नथी तेवू; निराधार (बाळक, स्त्री, भीखारी, पंगु वगेरे) (२) पुं० इंद्र आकांक्ष १ उ० इच्छ; अभिलाषा राखवी (२) जरूर होवी आकांक्षा स्त्री० इच्छा ; अभिलाषा (२) हेतु; इरादो (३) -नी सामे नजर करवी ते ; अपेक्षा (४) तपास (५) सांभळनारने बीजा पदनी अपेक्षा रहे तेवी प्रथम पदनी अपूर्णता (व्या०) आकांक्षिन् वि० आकांक्षा -- अपेक्षा -अभिलापा राखनाएं गरीबाई आकिंचन, आकिंचन्य न० दारिद्रय ; आकीर्ण वि०विखरायेलु; वेरायेल (२) व्याप्त ; पूर्ण (३) न० भीड ; टोळ आकुल वि० व्याकुळ क्षुब्ध (२) अस्वस्थ; व्यग्र (३) न० भीडवाळं स्थान आकुलम् अ० गभराटमां; {झवणमा आकुलित वि० क्षुब्ध; व्यग्र (२) गूंचवायेलु; मृझायेल आकुंच १ आ०, ६ प० वांका वळवं -प्रेरक० वांकुं वाळवं; संकोचबु आकुंचित वि० वळेलु; वाळेलु (२) संकोचेलु (३) वांकडिय (वाळ) आकणित वि० सहेज संकोचायेलं आकूत न० हेतु; अभिप्राय; इरादो (२) मनोभाव ; लागणी (३)आश्चर्य आकृति स्त्री० कर्मेंद्रिय (२) क्रिया (३) इरादो; आशय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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