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________________ असि ५८ अस्त्रमंत्र असि पुं० तरवार असूर्य वि० सूर्य वगरन;प्रकाश वगरनुं असित वि० धोळं नहि तेवू - काळू (२) असूर्यपश्या स्त्री० सूर्यने पण न जोती पुं० काळो रंग (३) कृष्णपक्ष -- पतिव्रता स्त्री (२) राजानी स्त्री असितगिरि पुं० ए नामनो पर्वत असृक्पात पुं० रक्तपात असितग्रीव पुं० अग्नि (२) मोर असग्धारा स्त्री० लोहीनी धारा असितपक्ष पुं० कृष्णपक्ष छोड़ असृज् न० लोहीन दीधेलं असिता स्त्री० यमुना नदी (२) गळीनो असृष्ट वि० न सर्जेलं (२) न तजेल (३) असिद्ध वि० सिद्ध नहि थयेलु (२) असौष्ठव वि० सुन्दरता वगरनु; कदरूपुं अपरिपक्व; काचु (३) अपूर्ण अस्खलित वि० अडग; स्थिर (२) असिद्धि स्त्री० सिद्ध - साबित न थर्बु रुकावट - भंग विनानुं (३) सुरक्षित ; ते (२) अपूर्णता; निष्फळता (३) सहीसलामत(४)स्खलन - भूल विनानुं अपरिपक्वता अस्त (अस् 'नुं भू० कृ०) वि० फेंकेलं ; असिधारावत न० तलवारनी धार उपर मोकलेलं (२) समाप्त थयेलं ऊभा रहेवानुं व्रत (अति कठिन व्रत) अस्त पुं० जुओ 'अस्ताचल' (२) सूर्याअसिपत्र वि० तलवारनी धार जेवां स्त (३) पडती; अवनति पांदडांवाळं (२) पुं० शेरडी (३) एक अस्तगमन न० सूर्यन आथमवू ते नरकनुं नाम (४) न० तलवार- म्यान अस्तमन न० सूर्यास्त थवो ते असु पुं० श्वास ; प्राण (२) (ब० व०) अस्तमय पुं० सूर्यास्त (२)अस्त ; पडती; पांच प्राण (प्राण, अपान इ०) नाश (३) ढांकी देवू ते असुख वि० दुःखी; दिलगीर (२) अस्ताचल पुं० पश्चिम तरफनो एक कठिन ; दुर्लभ (३)न० बेचेनी; दुःख कल्पित पर्वत, जेनी पाछळ सूर्य असुर वि० अलौकिक; दैवी आथमतो मनाय छे असुर पुं० दैत्य (२) पिशाच अस्ति अ० हयाती अने स्थिति बतावे असुरगुरु पुं० दैत्योना गुरु - शुक्राचार्य (२) कथा के वार्ताना आरंभे वधाराना असुररिपु, असुरसूदन पुं० विष्णु । शब्द तरीके आवे असुराचार्य पु० असुरोना गुरु-शुक्राचार्य अस्तित्व न होवू ते; हयाती असुराधिप पुं० दैत्योनो राजा-बलि । अस्तु अ० 'हो''थाओ' 'भले', 'खेर'असुरारि पुं० असुरनो शत्रु; देव (२) एवा अर्थोमां वपराय(२)अनुज्ञा, पीडा, इन्द्र (३) विष्णु भगवान तिरस्कार, असूया, प्रकर्ष, अंगीकार, असुरेंद्र पुं० असुरोनो राजा-बलि प्रशंसा, लक्षण, असूयापूर्वक अंगीकार असुर्य वि० असुरोनुं - ए अर्थो बतावे असुसम वि० प्राणप्रिय; प्रेमी अस्तेय न० चोरी न करवी ते असुहृद् पुं० शत्रु अस्तोक वि० थोडु नहि तेवू असूति स्त्री० वंध्यत्व; न जन्मवू ते ।। अस्तोदयौ पुं० द्वि० व० चडती अने असूयक वि० ईर्ष्याळ; द्वेषी (२) असंतुष्ट; पडती; अस्त अने उदय नाखुश अस्त्र न० फेंकवानुं हथियार (२)कोई पण असूया स्त्री० ईर्ष्या; द्वेष (२) बीजाना हथियार खिंचतां भणवानो मंत्र गुणमां दोष जोवा ते (३) क्रोध अस्त्रमंत्र ० अस्त्र फेंकतां के पाछु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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