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________________ दुश्च्य वन दुश्च्यवन पुं० इंद्र दुष्ठ वि० दुःखी; कंगाळ; पीडित (२) बीमार (३) अ० खोटी रीते; खोटुंज दुष्यंत पुं० जुओ पृ० ६१० दुःखलव्य वि० भेदतुं के कापवं मुश्केल होय तेवू दुःखीयति प० (पीडावं; दुःखी थq) दुःखोच्छेद्य वि० जिता के उखेडी नाखवू नुश्केल एवं दुःशला स्त्री० जुओ पृ० ६१० दुःशासन पुं० जुओ पृ० ६१० दूतमुख वि० प्रतिनिधि द्वारा बोलतुं दूतयति प० (दूत तरीके मोकलवू) दूत्य न० दूत तरीकेनुं काम दूरपातन न० दूर रहेला निशानने वींध, ते दूरीभू दूर थQ; अळगा थq दूरे कृदूर करवू; तजवू दूरे तिष्ठतु (भले थाय ; कांई परवा नहि) दूर्वांकुर पुं० दरोनी कुमळी कुंपळ के कुमळं पान दूषण पुं० जुओ पृ० ६१० दृगृष (दृश् + रुध) वि० दृष्टिने रोकतुं दृढनाहिन वि० मक्कम; आग्रही दृढधन्विन् पुं० बाणावळी दढमुष्टि वि० कंजूस (२) पुं० तरवार (३) सखत मूठी दृढीकार पुं० समर्थन; पुष्टि दृश्यस्थापित वि० झट नजरे चडे ते रीते मूकेलं वृषद्वती स्त्री० जुओ पृ० ६१० देवकी स्त्री० जुओ पृ० ६१० देवगिरि पुं० जुओ पृ० ६१० देवताप्रतिमा स्त्री० देवनी मति देवयात्रा स्त्री० देवनी मूर्तिनो वरघोडो देवयानी स्त्री० जुओ पृ० ६१० देवव्रतत्व न० ब्रह्मचर्य व्रत देवशत्रु पुं० असुर; राक्षस द्राधयति देवसात् अ० देव स्वरूपे देवसात् भू देव बनी जq देवसेना स्त्री० देवोन सैन्य (२) स्कंद - कार्तिकेयनी पत्नी देवहूति स्त्री० जुओ पृ० ६१० देवातिदेव पुं० श्रेष्ठ देव (२) विष्णु (३) शिव (४) बुद्ध देवानुचर पुं० देवनो हजूरियो [वेद देवार्पण न० देवने चडावेली वस्तु (२) देशकालम् अ० समय अने स्थळ मुजब देशकालौ पुं० द्वि० व० समय अने स्थळ देहलोदीपन्यायः जुओ पृ० ६३३ ।। देहांतरप्राप्ति स्त्री० अन्य शरीर के बीजो जन्म प्राप्त थवो ते देप वि० दीवान दैवी स्त्री० दैव विवाहनी रीते परणेली स्त्री (२)वि० स्त्री० देव संबंधी दैष्टिक वि० दैव के नियतिथी नक्की ___ थयेलु (२) पुं० नियतिवादी; बधुं नसीबथी नियत थयेलु छे एवं माननारो दोहददुःखशीलता स्त्री० गर्भावस्था दोहदधूप पुं० खातर तरीके वपरातुं एक सुगंधी द्रव्य दौस्थ्य न० दुःखी स्थिति निवास, घसद पं० देव द्यूतकरमंडली स्त्री०, द्यूतमंडल न० जुगारीओनी मंडळी (२) जुगारीनी आसपास दोरेलु वर्तुल (देवू न चूकवी दे त्यां सुधी तेनी बहार न जई शके) द्यूतलेखक पुं०, न० जुगारनी होड नोंधनारो [बांधनारो खोकार पुं० शिल्पी (ऊंचा महेलो द्रढयति प० (सखत बांधवू; समर्थन करवू; टेको आपवो) मिल पुं० जुओ पृ० ६१० द्रविडाः पुं० ब० व० जुओ पृ० ६१० वाघयति प० (लांबु करवू, विस्तारवू; विलंब करवो) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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