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________________ तिलोत्तमा ६८८ त्रिवृत् समाय तेटला तल (गोदान तरीके तैलपूर वि० तेल पूरवाथी सळगतुं ब्राह्मणने आपवा ते) रहेत (दीपक) (रत्नो दीवा. तरीके तिलोत्तमा स्त्री० जुओ पृ० ६०८ काम दे ते 'अतैलपूर दीपक' कहेवाय) तीक्ष्णरस पुं० विष; झेरी प्रवाही तैलप्रदीप पुं० (तेलनो) दोवो (२) सूरोखार तोयाग्नि पुं० वडवानल तीवद्युति पुं० सूर्य तोयाधार पुं० सरोवर; जळाशय तुच्छयति प० (खाली के कंगाळ करवं) तोयोत्सर्ग पुं० वरसाद [सुमेळ तुत्थ् १० उ० छाई देवू; ढांकी देवं तौर्यत्रिक न० नृत्य गीत अने वाजिबनो तुभ् ४,९ ५० हणवू; प्रहार करवो त्रयस्त्रिशत् स्त्री० तेत्रीस तुरंगम पुं० घोडो त्रयःपंचाशत् स्त्री० ओपन तुरंगमेध पुं० अश्वमेध यज्ञ त्रयःषष्टि स्त्री० वेसठ तुरीयजाति पुं० शूद्र (चतुर्थ वर्ण) त्रयीसंवरण न० गुप्त राखवानी त्रण तुलागुड पुं० (शस्त्र तरीके वपरातो) क्रियाओ (पोतानां छिद्र, शत्रुना एक जातनो गोळो छिद्रनी तपास, मसलत) तुनिंदास्तुति वि० निंदा अने प्रशंसामां त्रस न० जंगम प्राणीओनो समूह समान बुद्धिवाळं (२) वन (३) पशु-प्राणी तुषकंडनन्यायः जुओ पृ० ६३३ । त्रिकूट पुं० जुओ पृ० ६०९ तुषारकण पुं० हिमकण; झाकळबिंदु त्रिगर्त पुं० जुओ पृ० ६०९ तुष्यतुदुर्जनन्यायः जुओ पृ० ६३३ त्रिजटा स्त्री० एक राक्षसी (रावणे तुहिनय प० बरफथी आच्छादित करवू अशोकवाटिकामां सीता उपर पहेरो तुहिनरुचि पुं० चंद्र(शीतळ किरणवाळो) भरवा राखी हती, पण सीता प्रत्ये तुंदिलीकरण न० जाडु-फूलेलं करवू ते भाव राखती हती) तुंबी स्त्री० तुंबडीनो वेलो त्रिणाचिकेत पुं० यजुर्वेदना अध्वर्यु-यज्ञनो तूर्यमय वि० वादित्रनु एक भाग(२)तेने लगता व्रतनुं अनुष्ठान तणज्योतिस् न० रात्रे चळकती एक करनारो (३) नाचिकेत अग्निर्नु वनस्पति (ज्योतिष्मती) अनुष्ठान त्रण वखत कयुं होय तेको तृणता स्त्री० धनुष्य (२) तुच्छता त्रिदशीभूत वि० देव बनेलं तृणपीडम् अ० दोरडं आमळती वखते त्रिपंचाशत् स्त्री० वेपन तांतणा अमळाय तेम (कुस्तीनो दाव) त्रिपुर न० जुओ पृ० ६०९ तृणभुज वि० तृणभक्षी त्रिपुरदाह पुं० त्रण नगरोन दहन तृणभूत वि० तणखला जेवू; बधी (शंकरे करेलु) प्रकारनी ताकात छीनवी लीधेलं त्रिपुरद्विष्, त्रिपुरहर पुं०शंकर (त्रिपुरनो तणय प० तणखलानी जेम तुच्छ गणवू नाश करनार) तृप्तियोग पुं० संतोष त्रिपुरी स्त्री० जुओ पृ० ६०९ तैलक्षौम न० एक जात तेलिया कपड़े विभाग पुं० क्रीजो भाग (जेनी राख घा उपर लगाडाय छे) त्रिमूर्धन् पुं० एक राक्षस तैलपायिन् पुं० एक जातनो वंदो (२) त्रिवृत् पुं० त्रण दोरानो कंदोरो (२) तलवार त्रण सेरनुं ताविज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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