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________________ कृतोदक ६७८ कोपयिष्णु कृतोदक वि० नाहेलं होय तेवं केलिपल्लव न० क्रीडा माटेनुं तळाव कृतोपकार वि० मदद के अनुग्रह कर्यो केलिवन न० क्रीडा माटेनुं उपवन कृत्य न० सुतार वगेरे कारीगरनुं ओजार केलिशयन न० क्रीडा के आराम माटेनो कृत्रिमपुत्रक पुं० ढींगली पलंग के सोफा कृत्रिमपुत्रिका स्त्री० दत्तक लीधेली पुत्री केलिसदन न० क्रीडास्थान:क्रीडा माटेनो कृप पुं० कृपाचार्य; जुओ पृ० ६०४ खानगी ओरडो कृपाणिका स्त्री० कटार; जर्मयो केवलता स्त्री० मोक्ष; अद्वैतभाव कृशगव वि० दूबळी गायोवाळू। केवलात्मन् वि० केवळ अद्वैत स्वरूपवाळं कृशर पुं० तल चोखानी दूधगां रांधेली केशकारिन् वि० केश ओळवा-गूंथवार्नु खीचडी [न आपनाएं काम करनाएं कृशातिथि वि० अतिथिने पूरतुं भोजन केशग्रह पुं० माथाना केशथी पकडq ते कृशाश्व पुं० जुओ पृ० ६०४ [नफो (रतिक्रीडामां के युद्धमां) कृषिफल न० खेतीनी ऊपज; खेतीनो केशबंध पुं० केशनो बंध; केश बंधाय कृष्ण पुं० जुओ पृ० ६०४ ते माटेर्नु मुकुट इ० साधन (२) कृष्णगति पुं० अग्नि नृत्य वखते हाथनी एक मुद्रा कृष्णच्छवि स्त्री० काळं वादळ (२) केशशल न० वाळनो एक रोग काळियार मृगनुं चामडु केशशला स्त्री० वेश्या कृष्णद्वैपायन पुं० जुओ पृ० ६०४ ।। केशसंवाहन न० वाळ ओळवा ते कृष्णमृग पुं० काळो मृग; काळियार केसर न० बकुल वृक्षरों पुष्प कृष्णा स्त्री० मच्छलिपट्टण आगळ केसरि पुं० हनुमानना पितानुं नाम समुद्रने मळती दक्षिणनी नदी केसरिणी स्त्री० सिंहण कृष्णायते आ० (श्याम-काळं करवू) कैकसी स्त्री० रावणनी मातानुं नाम कृष्णायस न० लोढुं'; लोखंड कैकेयी स्त्री० जुओ पृ० ६०४ कृसर पुं० जुओ 'कृशर'; तल-चोखानी कैटभ पुं० जुओ पृ० ६०४ दूधमां रांधेली खीचडी कैतक वि० केतकीन फूल केकयाः पुं० ब०व० एक देश (जुओ कतवक न० जूगटुं; जुगार प० ६०४) के तेना लोको कैतववाद पुं० जूठ; जूठाणु केकयी स्त्री० कैकेयी कैदारिका स्त्री० खेतरनो समूह केतयति प० (दर्शाव; बोलावq; कैरातक वि० किरातोन; किरात संबंधी सलाह आपवी; समय नक्की करवो) कैलातक न० एक प्रकारनो दारू केदारखंड न० पाणीने रोकवा करेलो कैशिकी स्त्री० नाटकनी चार शैलीनानो बंध के पाळी ओमांनी एक (कौशिकी) केन अ० शेनाथी; केवी रीते कैंकिरात पं० विलासी-कामी पुरुष केरलाः पुं० ब०व० दक्षिण हिंदनो एक कोकनदिनी स्त्री० रातुं पोयj देश (आजनुं मलबार) के तेना वतनीओ कोकामंख न० एक पवित्र तीर्थ केलिकला स्त्री० क्रीडाकुशळता; काम- कोक्काण वि० कोंकणर्नु क्रीडाना हावभाव (२) सरस्वतीनी कोपजन्मन् वि० क्रोधथी उत्पन्न थयेलं वीणा . [थयेलं कोपना स्त्री० क्रोधी स्त्री [राखतुं के लिकुपित वि० कामक्रीडामां गुस्से कोपयिष्णु वि० गुस्से करवानो इरादो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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