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________________ अश्मंतक अश्मंतक पुं० एक वृक्ष (अम्लोटक, कोविदारक इ०) (२) एक घास अश्र पुं० खूणो (मोटे भागे समासने छेडे) (२) न० आंसु (३) लोही अश्रद्दधान वि० श्रद्धा न करतुं अश्रद्धा स्त्री० अविश्वास; अनास्था अश्रद्धेय वि० विश्वास न करवा योग्य अश्राव्य वि० न सांभळवा लायक; न सांभळी शकाय तेवू अधांत वि० नहि थाकेलं (२) अ० थाक्या विना; सतत अश्रि, अश्री स्त्री० खणो (घर के ओरडानो) (२) धारवाळी बाजु (शस्त्र इ० नी) अश्री स्त्री० दुर्भाग्यनी देवी अश्रीक वि० दुर्भागी; समृद्ध नहि तेवू अश्रीमत् वि० दुर्भागी; कमनसीब अधील वि० जुओ 'अश्रीक' अश्र न० आंसू अश्रुत वि० नहि सांभळेलु (२) वेदथी विरुद्धy (३) शास्त्र नहीं भणेलं; अशिक्षित [असभ्य ; ग्राम्य अश्लील वि० बीभत्स; नठारु (२) अश्व पुं० घोडो अश्वतर पुं० खच्चर अश्वतरी स्त्री० खच्चरी अश्वत्थ पुं० पीपळानुं वृक्ष • अश्वपाल पुं० घोड़ानो खासदार अश्वमुख पुं० किन्नर अश्वमुखी स्त्री० किन्नरी अश्वमेध पुं० एक यज्ञ, जेमां दिग्विजय करी आवेलो घोडो होमवामां आवे छे अश्वशाला स्त्री० घोडानो तबेलो अश्वसाद, अश्वसादिन् पुं० घोडेसवार सैनिक अश्वस्तन, अश्वस्तनिक वि० कालन नहि -आज- (२) कालने माटे संघरो न करनारं अष्टमूर्ति अश्वहृदय न० अश्वविद्या अश्वा स्त्री० घोडी टुकडी अश्वारोहणीय न हयदळ;घोडेसवारोनी अश्विनीकुमारी, अश्विनौ पुं० (द्विवचन) देवोना वैद्य गणाता बे देवो अषाढ पुं० असाड महिनो अष्टक वि० आठ भागनुं बनेलं (२) न० ऋग्वेदना आठ भागमांनो दरेक (३) आठनो कोई पण समुदाय अष्टधा अ० आठ प्रकारे अष्टधातु पुं० आठ धातुओ (सोनुं, रू', तांबु, कथीर, पीतळ, सीसुं, लोढुं, पारो) अष्टन् वि० आठ अष्टपद पुं० करोळियो (२) शरभ नामनुं आठ पगवाळू एक कल्पित प्राणी (३) कैलास पर्वत (कुबेरनुं धाम) (४) पुं०, न० सोगठांबाजीनो पट अष्टभुजा स्त्री० महालक्ष्मीदेवी अष्टभोगाः पुं० (ब० व०) आठ भोगो (अन्न, उदक, तांबुल, पुष्प, चंदन, वसन, शय्या, अलंकार) अष्टम वि० आठमुं अष्टमहासिद्धयः स्त्री० (ब० व०) आठ सिद्धिओ (अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशिता, वशिता) अष्टमंगल पं० चार पग, कपाळ, छाती खांध, तथा पूंछडी जेनां धोळां होय तेवो घोडो अष्टमी स्त्री० आठमी तिथि ; आठम (२) न० राज्याभिषेक वखतनी आठ शुकनियाळ वस्तुओनो समूह : सिंह, वृषभ, गज, कलश, पंखो, निशान, वाद्य, दीप (३) शुकनियाळ गणाती आठ वस्तुओ (ब्राह्मण, अग्नि, गाय, सुवर्ण, घृत, सूर्य, जळ, राजा) अष्टमूर्ति पुं० शंकर (पृथ्वी, जळ, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्र, ऋत्विज - एवां आठ रूपवाळा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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