SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 661
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अप्रतिशासन ६४७ अभिनिष्पत् अप्रतिशासन वि० हरीफ राजा विनानु; अभिधार पुं० घी (२) यज्ञमां आहुति एकचक्री एवं उपर घी रेड, ते अप्रदक्षिणम् अ० डाबामांथी जमणुं होय अभिचारक, अभिचारिन् वि० मेली तेम (२) प्रतिकूळ होय तेम विद्यानो प्रयोग करना अप्रधान वि० मुख्य नहि तेवू; गौण अभिजनन वि० पोताना खानदानने अप्रवृत्त वि० कामे नहि लागेलुं (२) छाजे तेवू नहि प्रेरेलु (३) अनुचित अभिजनवत् वि० ऊंचा कुळनु;खानदान अप्रसक्त वि० निर्विघ्न ; रुकावट विनानुं अभिजुष ६ आ० सेवq; वारंवार जq अप्रसहिष्णु वि० (-ने माटे) असमर्थ अभिज्ञता स्त्री० ज्ञान; समज । अप्रसिद्ध वि० अजाण्यं ; अगत्य विनानुं अभिज्ञात वि० जाणतुं; समजतुं (२) असामान्य अभिज्ञानाभरण न० ओळखाण -यादअप्रस्ताविक वि० अप्रस्तुत दास्त तरीके आपेलं घरेणुं (वींटी) अप्रहत वि० हणायेखें -घवायेलुं नहीं अभिडीन न० -नी तरफ ऊडवू ते तेवू (२) खेडाया विनानु; पडतर अभितड् १० प० मार; ठोकवू (३) नवं-कोरे (वस्त्र) अभितप् १ प० तपाववं; गरम करवू अप्राप्तयौवन वि० यौवनने प्राप्त नहि (२) संताप, थयेल; पुख्त वय- नहीं तेवू अभिताप पुं० संताप अफलप्रेप्सु वि० फळेच्छारहित अभितान वि० खूब रातुं एवं अफल्गु वि० लाभकारक; उत्पादक अभिद्रुह ४ प० द्रोह करवो; धिक्कारवू; अबंधुकृत वि० सगां संबंधीओथी नहि ईजा करवा इच्छयूँ करायेलं; स्वाभाविक रीते ज विकसेलं अभिद्रोह पुं० द्रोह; कावतरं (२) अबाह्य वि० बाह्य नहि तेवू; अंदरनुं क्रूरता; जुलम (३) निंदा; गाळ (२) परिचित ; प्रवीण [अग्नि (४) दुःख ; त्रास अबिंधन पुं० वडवाग्नि; समद्रमा रहेलो अभिधायिन् वि० व्यक्त करतुं; अर्थ अबुद्धम् अ० अजाण्ये ; बुद्धिपूर्वक नहि बतावतुं (२) कहेतुं; जणावतुं [मागवू ते अभिधाव १ प० -नी तरफ दोडवू; अभययाचना स्त्री० अभयदान के रक्षण हुमलो करवो अभाविन् वि० न बनवानुं के न थवानुं एवं अभिनभः अ० आकाश तरफ;आकाशमां अभिकर्षण न० खेतीनुं ओजार । अभिनम्र वि० खूब नीचुं झूकेलं-वळेलं अभिकाम वि० प्रेमासक्त; कामातुर अभिनिर्मुक्त वि० सूर्यास्त समये ऊंघतुं अभिक्रमण न० हुमलो; चडाई (२)पासे _अने कर्तव्यकर्मो न बजावतुं जवू ते प्रसिद्ध कर, अभिनिर्वृत्ति स्त्री० सिद्धि; पूर्णता अभिख्या २ प० -प्रेरक जाहेर करवू अभिनिविष्ट वि० तत्पर; परायण अभिगुप् १० प० बचावq; रक्षण करवू (२)दृढ़ ; स्थिर (३)युक्त; संपन्न (४) अभिगुप्ति स्त्री० संरक्षण (२) निग्रह जक्की; दुराग्रही (५) प्रवीण अभिगृध्न वि० लोभी अभिनिवेशिन् वि० आसक्त; परायण अभिग १ प० –ने गाई संभळाव, (२) आसक्ति करावतुं (२) गीतोथी गाजतुं करवू अभिनिष्पत् १५० बहार नीकळवू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy