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________________ हृष्टरूप ५९४ हैमन हृष्टरूप वि० खुशीमा आवी गयेलू; हेमाद्रि पुं० सुमेरु पर्वत खुशमिजाज हेमात पुं० जंगली चंपो (२) धंतूरो हृष्टि स्त्री० आनंद; सुख ; प्रसन्नता हेमांक वि० सोनाथी सुशोभित हे अ० संवोधन, आह्वान, मत्सर, असं- हेमांग वि० सोनानुं मति -ए अर्थ दर्शावतो उद्गार हेमांभोज, हेमांभोरुह न० सोनेरी कमळ हेक्का स्त्री० हेडकी हेय वि० त्याज्य हेड् १ आ० अवगणवू; तिरस्कारदुं (२) हेर न० एक जातनो मुगट (२) हळदर १ प० वींटq; घेरवु (३) पहेरवं. (३) आसुरी माया हेति पुं०, स्त्री० शस्त्र; आयुध (२) हेरक पुं० जासूस; गुप्तचर प्रहार (३) सूर्यकिरण (४)प्रकाश; तेज हेरंब पुं० गणेश (५) ज्वाळा (६) साधन; ओजार हेरंबजननी स्त्री० पार्वती हेतु पुं० कारण ; प्रयोजन; निमित्त (२) हेरिक पु० जासूस; गुप्तचर मूळ ; उत्पत्तिस्थान (३) अनुमान कर- हेरुक पुं० रुद्रनो एक गण (२) गणेश • वानुं तार्किक कारण (४) तर्कशास्त्र हेल १ आ० अवज्ञा करवी (५) संसार; प्रपंच (जीवात्माना हेलन न०, हेलना स्त्री० अवहेलना; बंधD कारण) (६) किंमत; मूल्य तिरस्कार हेतुक वि० उत्पन्न करतुं (समासने अंते) हेला स्त्री० अवज्ञा; तिरस्कार (२) (२) पुं० कारण (३) साधन (४) शृंगारचेष्टा; विलास (३) आनंद; तर्कशास्त्री लीला (४) उत्कट कामवासना (५) हेतुगर्भ वि० सकारण; सहेतुक अनायास; सरळता; सहेलाई (६) हेतुदुष्ट वि० तर्कसंगत नहि एवं चांदनी हेतुना अ० -ने कारणे; -ना हेतुथी हेलि पुं० सूर्य (२)स्त्री० शृंगारचेष्टा; हेतुवाद पुं० वादविवाद ; चर्चा (२) कपट विलास (३) आलिंगन (४) वरघोडी (३) शंकाशीलता के नास्तिकताथी हेवाक पुं० इंतेजारी; आतुरता तर्क उठाववो ते हेतोः अ० –ना कारणथी हेवाकिन् वि० आतुर; इंतेजार हेत्वाभास पुं० भ्रामक हेतु (न्याय०) हेष १ आ० हणहणवू; गर्जवं हेम, हेमक न० सोनुं हेष पुं०, हेषा स्त्री०, हेषित न० घोडानुं हेमकुंभ पुं० सोनानो घडो हणहणवू ते; हणहणाट हेमकूट पुं० एक पर्वत हेषिन् पुं० घोडो [अने भीमनो पुत्र हेमकेश पुं० शंकर हैडिब, हैडिबि पुं० घटोत्कच; हिडिंबा हेमगिरि पुं० सुमेरु पर्वत हैतुक पुं० तर्क करनारो; बुद्धिवादी हेमन् न० सोनुं (२) धंतूरो (२) नास्तिक हेममालिन् पुं० सूर्य हैम वि० ठंडीने लगतुं; ठंडु (२) हिमथी हेमल पुं० सोनी (२) कसोटीनो पथ्थर __थयेलु (३) सोनानुं बनेलु (४) सोनेरी हेमसूत्र, हेमसूत्रक न० गळानुं एक घरेणुं . रंगनुं (५) पुं० शिव (६) न० हिम; हेमंत पुं०, न० छ ऋतुओमांनी एक; झाकळ ठंडीनी ऋत् (मार्गशीर्ष अने पोष हैमन वि० ठंड ; ठंडीने लगतं (२)हेमंत ए बे महिना) ऋतु संबंधी (लांबू; जेम के रात्रि) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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