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________________ स्रोत स्मृतिविभ्रम ५७९ स्मृतिविभ्रम पुं० जुओ 'स्मृतिभ्रंश' स्रवद्रंग पुं० बजार; मेळो स्मृतिविषय पुं० जुओ 'स्मृतिपथ' लवंती स्त्री० नदी; झरj स्मृतिशेष वि० मृत; मरेलु स्रष्ट पुं० स्रष्टा; सर्जक (२)विधाता; स्मृतिहीन वि० भुलक' ब्रह्मा (३) शिव स्मेर वि० स्मित करतुं ; हसतुं (२) त्रस्त ('संस्' नुं भू० कृ०) वि. पडी प्रफुल्लित ; खीलेलं (३)गर्विष्ठ गयेलं; छूटी गयेलु (२) शिथिल स्यद पुं० वेग; गति थयेलं; नीचे नमी गयेलु (३) लटकतुं; स्यन्न ('स्यद्' नुं भू० कृ०)वि० झरेलु; लबडतुं [आसन ; पथारी गळेलं; टपकेलु स्रस्तर पुं० अढेलाय-आडा पडाय तेवं स्यम् १ प०,१० उ० अवाज करवो; स्रंस १ आ० सरी पडवं; नीचे पडी जवं मोटेथी बूम पाडवी (२) भागी पडवू; छूटुं पडी जq(३) स्यमंतक पुं० एक कीमती मणि (रोज जवू(४)टींगावं; लटकवू आठ भार सोनुं आपतो) -प्रेरक० ढीलं करवू; धीमुं पाडवू स्यंद १ आ० झरवू; झमवं; टपकवू; स्रंसन न० नीचे पडवू के पाडवं ते (२) वहेवू (२) दोडवू; नासी जq (३) गर्भस्राव (३) जुलाब देखावं; थर्बु (४) वरस स्रंसिन् वि० सरको जतुं; ढीलुं पडतुं; स्पंद पुं० झमवू-टपकवू ते (२) वेगे छूटुं पडतुं (२) ढीलुं लटकतुं जq - खसर्बु ते (३) रथ स्राक् अ० जलदीथी; झडपथी स्यंवन वि० झडपी; वेगीलु (२) वहेतुं; स्राव पुं० झर ते; झम, ते; वहेवं ते झडपथी जतुं (३) पुं० युद्धरथ ; रथ नु १५० झर; झमवू; टपकवू(२) (४) न० टपकवू ते; झमयूँ ते । वहेवरावq; वहेवा देवू (३) जq; स्यंदनिका स्त्री० लाळनुं टपकुं (२) खसर्बु (४) टपकी जवू; सरी जq; झरो; झरणुं [जतु (३) वेगे धसतुं क्षीण थq; नाश थवो(५)सरकी जदूं स्यंदिन वि० झमतुं; झरतुं; वहेतुं (२) त्रुघ्न पुं० एक प्रदेश के जिल्ला, नाम स्यात् अ० कदाच एम पण होय (पाटलिपुत्रथी एकाद दिवसनी मजले) स्याद्वाद पुं० 'अमुक दृष्टिए एम पण च् स्त्री० घी होमवानुं लाकडानुं होई शके' एवो निराग्रहीपणानो जैन कडछी जेवू साधन [टपकावतुं वाद- दार्शनिक सिद्धांत खुत् वि० (समासने छेडे)वहेवरावतुं; स्यूत ('सि' न भू० कृ०)वि० सोयथी स्रुत ('सु' नुं भू० कृ०)वि० झरेलु; सीवेलुं (२) वींधायलं; परोवायेलं टपकेलं (२) गयेलं (३) साथे वणायेखें-जोडायेलु (४) खुति स्त्री० सरवू ते; टपकवू ते (२) पुं० कोथळो; गूण [माटेनो छेडो प्रवाह; झरणुं [कडछी स्नग्दामन् न० हारनो गांठ वाळवा सुव पुं०, नुवा स्त्री० यज्ञमां वपराती स्रग्धर वि० हार पहेरेलु [तेवं स्लू स्त्री० यज्ञनी कडछी स्रग्विन् वि० माळा के हार पहेर्यो होय स्रोतस् न० प्रवाह; वहेळो (२) वेगथी ब्रज स्त्री० फूलनी माळा (२) हार वहेतो प्रवाह (३) नदी (४) मोज खवं पुं० झरवू के झमवू ते; वहेवू ते (५) पाणी (६) इंद्रिय (७) हाथी(२) टीपांनी धार (३) झरो नी सूंढ (८)शरीरनु रंध्र (९)जवू ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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