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________________ तेन ५७२ स्थलकमलिनी स्तेन पुं० चोर (२)न० चोरी करवी ते स्त्रीयंत्र न० स्त्री रूपी यंत्र स्तेय न० चोरी; लूट (२) चोरायेली स्त्रीरत्न न० श्रेष्ठ स्त्री(२)लक्ष्मी वस्तु(३)गुप्त वात; खानगी वात । स्त्रीलिंग न० नारी जाति (व्या०) (२) स्तै १५० पहेरवू; शणगारवू स्त्रीपणानें कोई पण चिह्न (स्तन इ०) स्तमित्य न० (अंगोनी) जडता; अक- (३) स्त्री, गुह्यांग - योनि __ डाई जवुते; जूठा पडी जवुते स्त्रीविधेय पुं० स्त्रीना उपर सत्ता स्तोक वि० थोडं; अल्प (२)ट्रंकु (३) चलावतो होय तेवो पुरुष तुच्छ; हलकुं(४)पुं० टी'; बहु थोडं ते स्त्रीसंग पुं० स्त्रीमा आसक्ति (२)मैथुन स्तोकक पुं० चातक [वळेलं स्त्रीसंस्थान वि० स्त्रीनी आकृतिवाळं; स्तोकनम्र वि० थोडंक नमेलं; जरा स्त्रीना स्वरूपवाळू स्तोकम् अ० थोडं- अल्प होय तेम स्त्रीसेवा स्त्री० स्त्रीमां आसक्ति स्तोतव्य वि० वखाणवा लायक; स्तुति स्त्रैण वि० स्त्री संबंधी; स्त्रीनें; स्त्रीने __ करवा लायक लगतुं (२)स्त्रीने उचित (३) स्त्रीमा स्तोत् पुं० वखाण करनारो; स्तुति आसक्त एवं (४) न० स्त्रीपणुं (५) करनारो(२)चारण; बंदीजन स्त्री जाति (६)स्त्रीओनो समुदाय । स्तोत्र न० वखाण (२) स्तुतिनुं सूक्त स्थ वि० (समासने अंते) रहेतुं; होतुं स्तोभ पुं० प्रतिबंध; अवरोध (२) (जेमके, 'तटस्थ') (२)स्थावर __थोभq ते (३)अनादर (४)सूक्त स्तोत्र स्थग् १५० ढांकवृं; छुपावq (२) स्तोम पुं० स्तुति; स्तोत्र (२)यज्ञ ; होम (३)सोमनोहोम (४)समूह; समुदाय व्यापवू; ढांक; भरी काढवू (५)ढगलो; जथो स्थगर पुं० 'पुत्रजीवक' नामनो छोड स्त्यान वि० ढगलो करेलु; एकळु करेलु स्थगिका स्त्री० वेश्या; गणिका (२) (२) स्थूल ; भारे; जाडु (३) लीसुं; तांबुलवाहकनुं पद (३) पाननो डबो चीकj(४)न. कद के जथामां वधवं स्थगित वि० ढांकेलं; छुपावेलु (२)बंध ते; भारे-जाडु एवं ते (५)आळस; करेल; वासेलु (३)रोकेलं; अटकावेलु सुस्ती (६) पडघो; अवाज स्थगु पुं० खूध स्त्यै १ उ० एकळुथq; ढगलो थवो (२) स्थपति वि० मुख्य (२)पुं० अधिपति; पथरावू; फेला राजा (३) शिल्पी (४) सुतार (५) स्त्री स्त्री० नारी (२) कोई पण प्राणीनी सारथि (६) अंतःपुरनो रक्षक मादा (३)पत्नी(४)नारी जाति(व्या०) स्थपत्य पुं० अंतःपुरनो कंचुकी स्त्रीजित पुं० स्त्रीनो ताबेदार- तेना स्थपुट वि० आपद्ग्रस्त (२)ऊंचुंनीचुं; हुकम प्रमाणे वर्तनारो पति विषम [सांकडा भागमां आवेलु स्त्रीमिणी स्त्री० रजस्वला स्थपुटगत वि० विषम भागमां आवेलं; स्त्रीपर वि० कामुक; व्यभिचारी स्थल न० सूकी जमीन (२) किनारो स्त्रीपुंसौ पुं० द्वि०व० पति अने पत्नी (३)जमीन (४) स्थळ; स्थान (५) (२)नर अने मादा ऊंची जमीन; टेकरो (६) विवाद के स्त्रीपूर्व पुं० जुओ 'स्त्रीजित' चर्चानो विषय के प्रसंग (७)पुस्तकनो स्त्रीबुद्धि स्त्री० स्त्रीनी बुद्धि के सलाह भाग(८)तंबू (२) स्त्रीनी सलाह स्थलकमल न०, स्थलकमलिनी स्त्री० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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