SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 574
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुतमाम् ५६० सुनीति (२)खूब गरमीवाळ (३)पुं० तपस्वी सुदूर वि० खूब दूर एवं (४)सूर्य (५)न० तीव्र तप सुदूरम् अ० अत्यंत दूर (२) अतिशय सुतमाम् अ० उत्तम-श्रेष्ठ होय तेम प्रमाणमां; अत्यंत सुतराम् अ० वधु सारं होय तेम; घj सुदृढ वि० खूब मक्कम (२) मजबूत वधारे होय तेम (२)परिणामे सुवश वि० सुंदर आंखोवाळू (२) सुतल न० सात पाताळोमांनुं एक स्त्री० सुंदर स्त्री मुतंगम पुं० पुत्रनो पिता सुधन्वन् वि० उत्तम धनुर्धारी एवं सुतंत्री वि० सारी रीते तार खेंच्या होय सुधर्मन् वि० पोतानां कर्तव्य बराबर ते, (२) सारा अवाजवाळू (वाद्य) बजावनाएं (२) पुं० इंद्रनो सभाखंड सुता स्त्री० पुत्री के महेल सुतार वि० घणा ऊंचा अवाजवाळू सुधर्मा स्त्री० देवसभा (२) द्वारका (२) तेजस्वी (३)सुंदर कीकीओवाळू सुधा स्त्री० अमृत (२) फूलनुं मध (३) सुतिन् वि० पुत्र के संततिवाळू (२) रस (४) चूनो (घोळवानो) पुं० पिता सुधाकर पुं० चंद्र सुतिनी स्त्री० माता। सुधाकार पुं० धोळनारो सुतीक्ष्ण वि० तीक्ष्ण धारवाळू (२) सुधाक्षालित वि० धोळेलं घणुं तीj (३) खूब पीडा करे तेवू सुधाभूबिंब न० चंद्रबिंब (४) पुं० एक ऋषि [समय सुधासित वि० चूना जेवू सफेद (२) सुत्याकाल पुं० सोमरस निचोववानो अमृत जेवं तेजस्वी (३) अमृतथी सुत्रामन् पुं० इंद्र छवायेलं; अमृतवाळं मुदक्षिण वि० न्यायी प्रमाणिक (२) सुधास्यंदिन वि० अमृत झरतुं घणी दक्षिणाओ अपाती होय तेवू (३) सुधांशु पुं० चंद्र कुशळ; प्रवीण (४) विनयी सुधी वि० बुद्धिशाळी; चतुर (२) सुदक्षिणा स्त्री० दिलीप राजानी राणी पुं० विद्वान ; पंडित; ज्ञानी (३) स्त्री० मुदत् वि० सुंदर दांतवाळू सुंदर बुद्धि; ऊंडी समजण के ज्ञान सुदर्श वि० सुंदर देखाव सुधम्रवर्णा स्त्री० अग्निनी सात सुदर्शन वि० सुंदर; देखावडु (२) जीभमांनी एक सहेलाईथी जोई शकाय तेवू (३)पुं० सुनय पुं० सद्वर्तन (२) सारी राजविष्णुनुं चक्र(४)शिव (५)मेरु पर्वत नीति के व्यवहारनीति (६)न० जंबुद्वीप (७)इंद्रनी नगरी सुनयना स्त्री०सुंदर आंखोवाळी स्त्री (२) सुदर्शना स्त्री० सुंदर स्त्री (२) स्त्री स्त्री [बळरामनुं मुशळ (३) आज्ञा; हुकम [राजधानी । सुनंद पुं० एक जातनो राजमहेल (२) सुदर्शनी स्त्री० अमरावती; इंद्रनी सुनिभूत वि० खूब ज एकांत होय तेवं सुदामन् वि० उदार; दानी (२) पुं० (२) अत्यंत खानगी एवं श्रीकृष्णनो मित्र ब्राह्मण सुनिभृतम् अ० खूब खानगी रीते; सुदि अ० शुक्लपक्षमा अत्यंत एकांतमां सुदुरासद वि० पासे न जई शकाय तेवू सुनीति स्त्री० सद्वर्तन ; सदाचार(२) सुदुर्लभ वि० महा मुश्केलीए मळी सारी राजनीति के व्यवहारनीति (३) शके तेQ ध्रुवनी माता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy