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________________ सिद्धार्थक करी होय तेवू (२)पुं० धोळा सरसव (३)गौतम बुद्धनुं नाम सिद्धार्थक पुं० घोळा सरसव सिद्धासन न० एक प्रकारचें आसन सिद्धांगना स्त्री० सिद्ध जातिनी देवीस्त्री [अंजन सिद्धांजन न० चमत्कारी शक्तिवाळं सिद्धांत पुं० साचो साबित थयेलो एवो निश्चित मत के निर्णय सिद्धि स्त्री० सफळता; पूर्णता; प्राप्ति (२)समृद्धि (३)पुरवार थq ते (४) फैसलो (फरियादनो) (५) रांधवू ते (६)चमत्कारी शक्नि(आठ गणाय छे अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वशित्व, कामावसायिता) सिद्धिद वि० सफळता आपनाएं; सुख आपनारु (२)आठ सिद्धिओ आपनारं सिष् ४ प० सिद्ध थर्बु; सफळ थq; पार पडवू (२) बराबर लक्ष उपर तकावू (३) साबित के पुरवार थq(४)जितावं (५) १५० जq (६) निवारवू (७) आज्ञा करवी; शासन करवू सिध्य पुं० पुष्य नक्षत्र सिनीवाली स्त्री० चौदशयुक्त अमावा स्या (ज्यारे चंद्ररेखा भाग्ये देखाय तेम ऊगे छे) सिन्व् १ प० भीनुं कर सिप्रा स्त्री० स्त्रीनी कटिमेखला-कंदोरो (२) उज्जयिनी पानी नदी सिमिसिमायते आ० (टाढ चडवी; धूजQ) सिरा स्त्री० शिरा; नम जोडवं सिव् ४ ५० [सीव्यति ] सीवq (२) सिष्णासु वि० नाहवानी इच्छावाळ सिसिक्षा ('सिच्' उपरथी) स्त्री० सींचवानी-छांटवानी इच्छा सिसक्षा स्त्री० उत्पन्न करवानी इच्छा सिंहावलोकन सिंघाणक न० लोखंडनो काट (२) नाकनी लीट सिंचन न० सींचवू-रेडवू ते सिंजा स्त्री० धातुनां घरेणांनो रणकार सिंजित न० (झांझर इ० नो) झमकार सिंजिनी स्त्री० धनुष्यनी दोरी सिंदुक, सिंदुवार, सिंदुवारक पुं० एक __ वृक्ष (निर्गुडी?) सिंदूर पुं० एक वृक्ष (२) न० सिंदूर; पारो सीसुं तथा गंधकनी मेळवणीनो लाल भूको सिंधु पुं० समुद्र; सागर (२)सिंधु नदी (३)सिंधु नदीनो प्रदेश (४)माळवानी एक नदी (५) मोटी नदी सिंघुपिब पुं० अगस्त्य मुनि सिंधुर पुं० हाथी सिंधुरवदन पुं० गणपति सिंधुराज पुं० जयद्रथराजा [ईराननो) सिंधुवार पुं० जातवंत घोडो (सिंध के सिंधुसौवीराः पुं० ब०१० सिंधु नदीनी आसपास रहेता एक जातना लोक सिंह पुं० एक रानी हिंसक प्राणी (पशु ओनो राजा मनाय छे) (२) (समासने अंते) ते ते वर्गनो उत्तम-श्रेष्ठ ते (उदा० 'पुरुषसिंह') सिंहकर्ण पुं० सिंहनी मूर्तिवाळो खुणो सिंहद्वार न० (महेल वगरेनो) मुख्य दरवाजो सिंहध्वनि पुं० सिंहनी गर्जना सिंहनदिन् वि० सिंहनी जेम गर्जतुं सिंहनाद पुं० सिंहनी गर्जना (२) तेवी योद्धाओनी गर्जना सिंहल न० सिलोन बेट सिंहसंहनन वि० सिंह जेवा मजबूत बांधावाळू (२) सुंदर [लीट सिंहाणक न० लोढानो कोट (२)नाकनी सिंहावलोकन न० सिंहनी पेठे पाछळ नजर करवी ते (आगळ जतां जता) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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