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________________ सापत्न ५५१ सामान्य सापत्न वि० हरीफाई - अदेखाईथी वेदनो मंत्र के पाठ (५) सामवेद (६) करेलु (२)हरीफनु; शत्रु, (३)पोताना अवाज; स्वर पतिनी बीजी स्त्रीन; शोक सामन्य पुं० सामवेद जाणनारो ब्राह्मण; सापत्नाः पुं० ब० व० एक ज पतिनी ते वेद गावामां कुशळ एवो ब्राह्मण जुदी जुदी पत्नीनां बाळको सामयिक वि० रूढि-परंपराथी चालतुं सापल्य न० कोईनी सपत्नी- शोक आवेलं (२) करार करेलु; कबूलेलं होवू ते (२) अदेखाई; दुश्मनावट (३) (३) करार मुजबY (४) नियमित पुं० शोकनो दीकरो (४) शत्रु (५) (५) समयसर होवू ते (६) नियत सावको भाई समये थतुं के आवतुं (७) तत्पूरतुं; सापदेशम् अ० बहानं काढीने थोडा वखत माटेर्नु सापवाद वि० अपवाद - आळ फेलावतुं सामयोनि पुं० हाथी (२) ब्रह्मा (२) आळ लाग्युं होय तेवू सामर्थ्य न० बळ; शक्ति (२) समान सापवादम् अ०ठपको आपीने ; निंदापूर्वक प्रयोजन के हेतुवाळा होवापणुं (३) सापेक्ष वि० (सामान्य रीते समासमां) एक ज अर्थवाळा होवू ते -नी अपेक्षा होय तेवं; -ना संबंधमां सामर्थ्यात् अ० -ना बळे; -ना कारणे होय तेवू (२) पक्षपातवाळं सामर्ष वि० गुस्साभयुं मधुर वाणी सामवाद पुं० शांत पाडे तेवी मीठीसाप्ततंतव पुं० (ब०व०) एक पंथ सामवायिक वि० कोई पण मंडळी साप्तपद, साप्तपदीन वि०. सात पगलां संबंधी (२) समवाय-संबंध संबंधी साथे चालवाथी थ] (२) न० वर (३) पुं० मंत्री (४) कोई मंडळनो कन्याए अग्निनी आसपास सात प्रद आगेवान [उद्गाता क्षिणा करवी ते (३) गाढ मित्रता साफल्य न० सफळता (२) उपयोगी सामविद् पुं० सामवेद जाणनारो (२) सामवेद पुं० चारमांनो त्रीजो वेद पणुं (३) लाभ सामंजस्य न० औचित्य (२) खरासाबाघ वि. अव्यवस्थित पणुं; साचापणुं साभ्यसूय वि० अखं; ईर्षाळु सामंत वि० पासे- सरहदे आवेलुं (२) सामग पुं० सामवेद गानारो सार्वत्रिक (३) पुं० पडोशी (४) सामग्री स्त्री० कोई कार्यमां उपयोगी पडोशी राजा (५) खंडियो राजा एवो के साधन तरीके कामनो सामान । सामाजिक वि० सभा के समाजनुं (२) सामग्रय न० समग्रपणुं; पूर्णता; कुल- पुं० प्रेक्षक; सभ्य आखं ते (२) परिवार (३) साधन- सामाध्यायनिक पुं० सामवेदी ब्राह्मण सामग्री (४) मोक्ष सामानाधिकरण्य न० एक ज - समान सामज, सामजात पुं० हाथी परिस्थितिमां होवू ते (२) एक ज सामन् न० सांत्वन; प्रसन्न करवू ते; कार्य बजावq ते (३) एक ज पदार्थने शांत पाडवं ते (२) राजनीतिना चार लागु पडवापj उपायोमांनो एक - मीठी वातोथी सामान्य वि० सर्वसाधारण (२)समान; समजावीने मेळवी लेवं ते (साम, सर (३) मध्यम कक्षानुं (४) दाम, दंड, भेद) (३) स्तुतिवाळं तुच्छ (५) आखं; समग्र (६) न. के गाई शकाय तेवू स्तोत्र (४) साम- सर्वत्र होवू ते (७) समान लक्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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