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________________ संहन् ५४८ संहन २५० जोडवू ; भेगुं कर (२) ढगलो करवो; संग्रह करवो संहनन न० गाढपणुं; दृढता (२) घडतर; बांधो; शरीर (३)बळ (४) हणवू ते (५) घस - मसळवू ते संहननीय वि० दृढ; घट्ट संहरण न० भेगुं करवू ते (२) लेवं ते; पकडवू ते (३) संकोचवू ते (४)निग्रह (५) विध्वंस (६) पार्छ खेंची लेवू ते संहर्ष पुं० आनंद के . भयथी रोमांच थवां ते (२) हरीफाई संहार पुं० भेगुं करवं ते; एकळं करवं ते (२) संकोचवू ते; संक्षेप (३) पार्छ खेंची लेवू ते (४) निग्रह (५) विध्वंस; प्रलय (६) अंत; समाप्ति (७) समूह; समुदाय संहित वि० युक्त; साथेनुं (२)संबंधी; -मांथी नीकळेलु (३) गोठवेलं; मुकेलं (४) नजीकर्नु संहिता स्त्री० संयोग (२) समुच्चय (३) पद के लखाणनो व्यवस्थित संग्रह (उदा० मनुसंहिता) (४) वेदोना मंत्र भागनो सळंग संग्रह संह १ उ० एकळं करवू; भेगुं करवू(२) खंचवू; चूस (३) संक्षेप करवो; संकोचवू (४) संहार करवो (५) पार्छ खेंची लेवू (६) निग्रह करवो; दबावq (७) समेटी लेवु (८) अवळे मार्गे दोरवू संहृत वि० एकळु करेलु (२) संको चेलं; संक्षिप्त (३) पार्छ खेंचेलु (४) पकडेलु(५)निग्रह करेलु(६)नाश करेलं संहति स्त्री० संक्षेप (२) नियमन (३) विध्वंस; नाश (४) संग्रह संहष् ४ प० हर्ष पामवू; हर्षित थर्बु (२) खडु-ऊथई जq (रोमांच) संहष्ट वि० रोमांचित थयेलु संहाद पुं० अवाज; घोंघाट सागरांबरा साकम् अ० साथे; सहित (२) एकी साथे; एक ज वखते साकल्य न० समग्रता; आखं एवं ते साकल्यक वि० बीमार; मांदं साकल्येन अ० संपूर्ण रीते; समग्रपणे साकार वि० आकार - आकृतिवाळू (२) सुंदर आकारवाळं साकांक्ष वि० अभिलाषायुक्त (२) अर्थयुक्त (३) अपेक्षावाळं साकुल वि० व्याकुळ; मुंझायेलं साकृत वि० अर्थ के अभिप्रायवाळु (२) सहेतुक; इरादावाळू (३)विलासयुक्त साकतम् अ० अर्थ के अभिप्राय साथे (२) विलासयुक्त होय तेम (३)घ्यानपूर्वक साकेत न० अयोध्या शहेर साक्षर वि० वक्तृत्वशक्तिवाळू साक्षात् अ० नजर सामे;-नी हाजरीमां; खुल्लंखुल्ला; सीधेसीधुं (२) जाते; स्वयं (३) (समासमां) मूर्तिमंत - देहधारी होय तेम (उदा० 'साक्षाद्यम') साक्षात्कार पुं० प्रत्यक्ष ज्ञान; अनुभव साक्षात्कृ ८ उ० नजरे जोवू (२) जाते अंतरमा अनुभव, (३) परिणाम के फळ भोगव साक्षिन वि० नजरे जोनाएं; साक्षी होय तेवू (२) साक्षी (३) परमात्मा (४) जीवात्मा साक्षिप्तम् वि० अविचारीपणे साक्षेप वि० कटाक्षपूर्ण (२) पक्षपाती साक्ष्य न० पुरावो; साक्षीपर्यु सागर पुं० समुद्र (२) भगीरथ सागरगमा स्त्री० नदी सागरसुता स्त्री० लक्ष्मी सागरसूनु पुं० चंद्र सागरावर्त पुं० सागरद्वीप सागरांत वि० सागरथी वीटळायेलं; सागर सुधीनु सागरांबरा स्त्री० पृथ्वी (°) सग्रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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