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________________ संवेष्ट ५४५ संसज्जमान संवेष्ट १ आ० वींटवू; वीटळावं संशुष् ४ ए० पूरेपूरुं शुद्ध थर्बु संव्यवहार पुं० वेपारधंधो । -प्रेरक० पूरेपुरं शुद्ध करवू (२) संव्यस् ४ प० गोठव; रचवू भरपाई करवू; चूकते करवु (ऋण) संव्यान न० ढांकण (२) वस्त्र; पोशाक (३) तपासवू (३) उत्तरीय संशन वि० मेद - चरबीवाळू; जाडु संशप्तक पुं० युद्धमांथी पराङ्मुख न (२) फूली गयेलं; सोजावाळं थवानी प्रतिज्ञा लीधेलो योद्धो (बीजा- संश्रय पुं० आश्रयस्थान; रहेठाण (२) ओने भागता रोकवामां कामे लेबाय छे) वस, ते (३)-ने लगतुं होवू ते (४) संशम् ४ प० [संशाम्यति ] शांत थर्बु आशरो लेवो-शोधवो ते (५) आधार; (२)बुझायूँ; लुप्त थर्बु अवलंबन (६) आसक्ति -प्रेरक० नक्की करवू संश्रव पुं० लक्षपूर्वक सांभळ, ते (२) संशय पुं० संदेह; शंका (२) जोखम; वचन; कबूलात साहस (३) अनिश्चितता संश्रि १ उ० -ने आशरे जवू;-नो आशरो संशयगत वि० जोखममां आवी पडेलु लेवो (२)-ने अवलंब, (३)पाम; संशयच्छेदिन वि० शंका दूर करनारुं प्राप्त करवू (४) जोडावू; मळवू संशयात्मन् वि० संशय कर्या करतुं; संश्रित वि० आशरा माटे गयेलुं (२) शंकाशील; अनिश्चयी आश्रित; रक्षित (३) संबंध पामेल; संशयालु वि० अनिश्चयी; शंकाशील अवलंबेलु; आलिंगेलुं(४)-मां रहेलं; संशयित वि० शंकायुक्त; अनिश्चित स्वाभाविक [वचन आपq (२) जोखम भरेलु (३) न० शंका; संश्रु ५ उ० लक्षपूर्वक सांभळ, (२) अनिश्चितता संश्रुत वि० वचन आपेलं; कबूलेलं संशरण न० युद्धनी शरूआत (२) शरj (२)बराबर सांभळेलु [चोटवू संशित वि० धारदार; तीक्ष्ण (२) संश्लिष् ४ ५० वळगq; जोडावं; निश्चित ; नक्की (३) पूर्ण करेलु; बरा- संश्लिष्ट वि० वळगेलं ; चोटेलु ; भेटेलं बर पार पडेलु (४) दृढताथी वळगी (२) -मां रहेलं; --मां होतुं (३) रहेलु (व्रतने) जोडायेलं; संबद्ध (४) न० ढगलो; संशी २ आ० संशयमा होवू; अनिश्चित जथो; समुदाय होवू (२) आराम करवो; सूई जवू संश्लेष पुं० आलिंगन (२)संबंध संशोति स्त्री० शंका; संशय संश्लेषण न०, संश्लेषणा स्त्री० वळगवं संशोलन न० नियमित अभ्यास (२) ते (२) साथे बांधवानुं साधन (३) वारंवार परिचय करवो ते बंधन; संबंध; गांठ संशुद्ध वि० पूरेपूरुं शुद्ध करेल-थयेलं संसक्त वि० चोटेलं; वळगेलं; जोडा(२) साफ-स्वच्छ करेलु (३) दोष के येलु (२) नजीक आवेलु; संबद्ध (२) करजमांथी मुक्त थयेलु (४)तपासेलं; मिश्रित (४) युक्त (५)आसक्त अजमावेलं संसक्ति स्त्री० गाढ संबंध (२) अति संशुद्धि स्त्री० पूरेपूरी शुद्धि (२)साफ नजीकपणुं (३) गाढ परिचय (४) करवू ते (३)सुधार, ते (दोष-भूल) आसक्ति थोथवातुं (शोकथी) (४) चूकते करवं- मुक्त थर्बु ते संसज्जमान वि० वळगतुं; चोटतुं (२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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