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________________ सर्वव्यापिन् ५२७ सध्य सर्वव्यापिन् वि० सर्वव्यापी; बधे व्यापेलं ज लोकमां रहे ते (मुक्तिना चार सर्वशस् अ० पूर्णपणे (२) बधे (३) प्रकारमांनो एक) बधी बाजुए [धीरजवाळं सव पुं० सोमरस निचोववो ते (२) सर्वसह वि० बधुं सहन करनारं; __ आहुति (३) यज्ञ सर्वसहा स्त्री० पृथ्वी [नाश करनारं सवन न० सोमरस निचोववो के पीवो सर्वसंस्थ वि० सर्वव्यापी (२) सर्वनो ते (२) यज्ञ (३) आहुति (४) स्नान सर्वसाक्षिन् वि० बधाना साक्षीरूप (२) सवनकर्मन् न० आहुति अर्पवारूपी क्रिया पुं० परमेश्वर (३) अग्नि (४) पवन सवपुष वि० मूर्तिमंत सर्वस्व न० पोतानुं बधुं ते; पोतानी सवयस् वि० सरखी उंमरनुं (२) पुं० बधी मिलकत (२) सार; तत्त्व समकालीन व्यक्ति (३) स्त्री० स्त्रीनी सर्वहर वि० बधुं हरनारु (२) कोईनी विश्वासु सखी तमाम मिलकतनुं वारसदार (३) सवर्ण वि० एक ज रंगनुं (२) एक ज सर्वनो नाश करनारुं (मृत्यु) देखाव-; सदृश (२) एक ज वर्ण के जाति [विस्तृत सर्वकष वि० सर्वनो नाश करनाएं; सविकाश (-स)वि० पूरेपूरूं खीलेलं (२) सर्वशक्तिमान (२) पुं० ठग सवितर्कम् अ० विचारपूर्वक सर्वसहा स्त्री० पृथ्वी पूरेपूरु सवित वि० उत्पन्न करनारूं; आपनाएं सर्वाकार अ० (समासमां) संपूर्णपणे; (२) पुं० सूर्य सर्वात्मना अ० संपूर्ण रीते; पूरेपूरुं। सवित्री स्त्री माता (२) गाय सर्वार्थसाधिका स्त्री० दुर्गा । सविध वि० एक ज 'जातन; एक ज सर्वार्थसिद्ध पुं० गौतम बुद्ध । प्रकार- (२) नजीकर्नु (३) न० सर्वांगीण वि० आखा शरीरमा व्यापतुं सांनिध्य; पडोश सर्वोत्तम वि० सौमां उत्तम ; श्रेष्ठ सविभ्रम वि० विलासी; स्वच्छंदी सर्षप पुं० सरसव; राई (२) वजन सविमर्श वि० विचारवंत. एक नानुं माप सविलक्षम् अ० शरम के मझवण साथे सलज्ज वि० शरमाळ; लज्जायुक्त सविशेष वि. विशिष्ट लक्षणोवाळु (२) सलिल न० पाणी विशिष्ट ; खास एवं (३) उत्तम ; श्रेष्ठ सलिलचर पुं० मगर वगेरे जळचर सविशेषतस्, सविशेषम् अ० खास करीने सलिलचरकेतन पुं० कामदेव (मकरकेतु) (२) अतिशय होय तेम [साथेनुं सलिलज न० कमळ सविस्तर वि० विस्तार युक्त; विगतो सलिलधर पुं० मेघ; वादळ (२) देव सविस्तरम् अ० विस्तारथी; विगतथी सलिलेंद्र पुं० वरुण सविस्मय वि० आश्चर्य पामेलुं (२) सलिलोद्भव पुं० शंख संदेह युक्त एवं सलिंग वि० -ने अनुरूप एवं सविस्मयम् वि. विस्मयपूर्वक सलील वि० लीला - क्रीडायुक्त; क्रीडा- सवेष्टन वि० पाघडी - फेंटावाळू प्रिय [प्रेमपूर्वक; हेतथी सवैलक्ष्य वि० कृत्रिम ; यत्नपूर्वक करेलु सलीलम् अ० रमतमां; लीलाथी (२) (२) गभरायेलं; गूंचवायेलं सलशम् अ० पूरेपूरु सव्य वि० डाबु (२) दक्षिण दिशानुं सलोकता स्त्री० इष्ट देवनी साथे एक (३) ऊलटुं; विपरीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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