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________________ सम सप्तलोकाः ५१६ ध्रुवतारानी पासेना आ नामना सात सब्रह्मचारिन् पुं० सहाध्यायी; एक ज ताराओ गुरुनो शिष्य (२) साथे ज दुःख सहन सप्तलोकाः पुं० ब० व० भूर्, भुवर्, स्वर् करनारो ते (३)एक ज जातनो ते महर, जनस्, तपस् अने सत्य के ब्रह्म- सभा स्त्री० मेळावडो; परिषद (२) ए सात लोक समाज; मंडळी (३) सभागृह (४) सप्तविध वि० सात प्रकारनुं . अदालत(५)धर्मशाळा (६)जुगारखानुं सप्तशती स्त्री० सातसो श्लोकनो संग्रह (७) वीशी; भोजनगृह सप्तसप्ति पुं० सूर्य (सात घोडाना सभाकार पुं० सभागृह बांधनारो __ रथवाळो) सभाज् १० उ० आदर करवो; अभिसप्तसमुद्राः पुं० ब० व० क्षार, क्षीर, नंदन आपq; (२) मान-पूजा-सत्कार दधि, घृत, इक्षुरस, मद्य अने स्वादूदक करवां (३) प्रसन्न करवू; खुश करवू (मीठे पाणी) ए सात सागर (सात (४) शणगारवं; शोभाव द्वीपनी आसपास आवेला) सभाजन न० सत्कार; अभिनंदन (२) सप्ताश्व पुं० सूर्य विनय; आदर (३) सेवा सप्ताश्ववाहन पुं० सूर्य सभाजित वि० सत्कार करायेलं; प्रसन्न सप्ताह पुं० (सात दिवस)अठवाडियु करायेलु (२) विख्यात; प्रशंसा करेलु सप्तांग वि० सात अंगवाळं राज्य (जुओ सभातल न० सभानी बेठक 'सप्तप्रकृति') सभासद पं० सभानो सभ्य ; 'मेम्बर' सप्ति पुं० धूसरी (२) घोडो (२) सभा वखतनो मददनीश सप्रतीक्षम् अ० प्रतीक्षापूर्वक सभिक, सभीक पुं० जुगारनो अड्डो सप्रतीश वि० आदरयुक्त वाळू चलावनारो सप्रत्यय वि० विश्वास युक्त (२)खातरी- सभ्य वि० संभा संबंधी (२)सभाने योग्य सप्रत्याशम् अ० आशा साथे। (३) विनयी; संस्कारी (४) विश्वासु; सप्रभ वि० सदृश; समान देखावनुं वफादार (५) पुं० सभानो मददनीश सप्रमाद वि० बेदरकार; लक्ष विनानुं (६) कुळवान (७) जुगारनो अड्डो सप्रश्रयम् अ० खूब विनयपूर्वक चलावनारो (८) तेनो नोकर सप्रसव वि० सहोदर एवं (२) गर्भयुक्त सम् अ० धातुओ के धातुसाधित शब्दो सफल वि० फल-परिणाम युक्त; सफळ साथे : सहित, साथे, खूब, अति, परि(२) जेनो हेतु पार पड्यो छे तेवू; पूर्णता के सुंदरतानो अर्थ दर्शाव (२) सिद्ध; सार्थक (३) खसी न करेलु नामो साथे : समान, सरखं, नजीक, सफलोदर्क वि० सफळ नीवडवानी सामे -एवा अर्थ बतावे खातरीवाळं सम वि० समान; सरखं (२) सरखी सबल वि० सेनायुक्त सपाटीवाळू; खाडा टेकरा विनानुं सबंधु वि० निकट संबंधवाळू (२) एक (३) बेकी (संख्या) (४) पक्षपात ज कुटुंब-(३) सगांसंबंधीवाळं (४) विना- (५) न्यायी; प्रमाणिक (६) मित्रवाळ (५) पुं० सगो; स्वजन सीधुं; सरळ (७) अनुकूळ ; सरळ (८) सबीजयोग पुं० एक समाधि; संप्रज्ञात तमाम ; कुल (९) न० सपाट प्रदेशसमाधि (योग०) भूमि (१०) सारा - अनुकूळ संजोगो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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