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________________ श्रुतिपथ शिल ५०८ चार (५) अवाज (६) वेद; वेद- श्रोणी स्त्री० जुओ 'श्रोणि' वाक्य (७)वाणी (८) कीति (९) ब्रह्म- श्रोतस् न० कान (२) हाथीनी सूंढ विद्या (१०) फलश्रुति (११) नाम । (३) इंद्रिय (१२)अभ्यास ; विद्वत्ता (१३)नादनो श्रोत पुं० श्रोता; सांभळनारो (२)शिष्य एक भेद (संगीतमा तेवी २२ श्रुति छे) श्रोतोरन्ध्र न० सुंढनुं कागुं-नसकोरं श्रुतिपथ पुं० काने पडवं ते । श्रोत्र न० कान (२) वेद अतिप्रसादन वि० कानने गमे तेवं श्रोत्रपरंपरा स्त्री. एकने कानेथी बीजाने श्रुतिमहत् वि० सारी पेठे वेद जाणनाएं काने आवेलो वात श्रुतिमूल न० कान- मूळ (२)वेदवाक्य श्रोत्रपेय वि० लक्षपूर्वक सांभळवा योग्य श्रुतिविप्रतिपन्न वि० अनेक प्रकारनी श्रोत्रिय वि० वेदमां पारंगत एवं (२) श्रुतिओ -सिद्धांतो सांभळवाथी व्यग्न पुं० विद्वान ब्राह्मण थई गयेलु (२) वेदने न प्रमाणतुं श्रौत वि० कानने लगतुं (२) वेदने श्रुतिविषय पुं० कान (२) कान सांभळी लगतुं (३) यज्ञने लगतुं (४) न० शके तेटलं क्षेत्र के अंतर कोई पण वेदोक्त कर्म (४)त्रण अग्नि श्रुतिसुख वि० कर्णप्रिय [तेवू (गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिण) श्रुतिहारिन् वि० कानने आकर्षे – गमे श्लक्ष्ण वि० नरम; मृदु (२) लीसुं; अणि पुं०, स्त्री०, श्रेणी स्त्री० पंक्ति सुवाळ (३) नान; पातळू; नाजुक हार (२) टोळु; समुदाय (३) (४) सुंदर; रमणीय महाजन; मंडळ (४) कोई पण श्लथ १० उ० शिथिल -ढीलं थर्बु (२) वस्तुनो अग्र भाग अशक्त थर्बु (३) ईजा करवी श्रेणिबद्ध, श्रेणिबंध वि० हारबंध -प्रेरक० ढीलं करवू; छोडवू श्रेयस् वि० वधारे सारं; पसंद करवा श्लथ वि० छोडी नाखेलुं (२) छुटुं योग्य (२) उत्तम; श्रेष्ठ (३) वधु पडेलु; सरी पडेलु (३) अस्तव्यस्त नसीबदार (४) न० पुण्य (५) सद्भाग्य; सुख, समृद्धि (६) कल्याण; श्लथबंधन न० स्नायुओ ढीला करवा ते मोक्ष (७) शुभ के मंगळ प्रसंग श्लथलंबिन वि० ढीलं; लबडतुं श्रेयस्कर वि० सुख के कल्याण करनारं श्लाघ् १ आ० वखाणवू (२) खुशामत श्रेष्ठ वि० सौथी उत्तम (२) सौथी करवी (३) बडाई हांकवी सुखी (३) सौथी प्रिय (४) सौथी श्लाघन वि० बडाश मारतुं (२) न० मोटुं (उमरमां) वखाण; खुशामत श्रेष्ठवाच् वि० वक्तृत्वशक्तिवाळू श्लाघा स्त्री० वखाण (२) बडाश; श्रेष्ठान्वय वि० उत्तम कुळ के वंशनुं आत्मप्रशंसा (३) खुशामत धेष्ठिचत्वर न० शेठ लोको रहेता होय श्लाघाविपर्यय पुं० बडाश न मारवी ते ते भाग -चकलं श्लाधिन् वि० गर्विष्ठ; उद्धत (२) श्रेष्ठिन् पुं० शेठ (२) महाजननो वडो बडाश मारतुं (३) प्रसिद्ध । श्रोणि स्त्री० कूलो; नितंब (२) मार्ग श्लाघ्य वि० वखाणवा लायक (२) श्रोणिबिंब न० गोळ नितंब (२) कमरपटो आदरणीय श्रोणिसूत्र न० कमरे बांधवानो दोरो श्लिष् ४ प० भेटवू (२) चोंटवू; (२) तरवारनो पटो वळगएँ (३) ग्रहण करवू; समजवू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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